सिव अपमानु न जाइ सहि हृदयँ न होइ प्रबोध। सकल सभहि हठि हटकि तब बोलीं बचन सक्रोध॥63॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
दोहा (63) | Dohas (63)
सिव अपमानु न जाइ सहि हृदयँ न होइ प्रबोध।
सकल सभहि हठि हटकि तब बोलीं बचन सक्रोध॥63॥
भावार्थ:-परन्तु उनसे शिवजी का अपमान सहा नहीं गया, इससे उनके हृदय में कुछ भी प्रबोध नहीं हुआ। तब वे सारी सभा को हठपूर्वक डाँटकर क्रोधभरे वचन बोलीं-॥63॥
siva apamānu na jāi sahi hṛdayaom na hōi prabōdha.
sakala sabhahi haṭhi haṭaki taba bōlīṃ bacana sakrōdha..63..
The insult to Siva was something unbearable; Her heart could not, therefore, be pacified. Then, sharply reproaching the whole assembly, She spoke in angry accents:-