सीय आइ मुनिबर पग लागी। उचित असीस लही मन मागी॥ गुरपतिनिहि मुनितियन्ह समेता। मिली पेमु कहि जाइ न जेता॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
सीय आइ मुनिबर पग लागी। उचित असीस लही मन मागी॥
गुरपतिनिहि मुनितियन्ह समेता। मिली पेमु कहि जाइ न जेता॥1॥
भावार्थ:
सीताजी आकर मुनि श्रेष्ठ वशिष्ठजी के चरणों लगीं और उन्होंने मन माँगी उचित आशीष पाई। फिर मुनियों की स्त्रियों सहित गुरु पत्नी अरुन्धतीजी से मिलीं। उनका जितना प्रेम था, वह कहा नहीं जाता॥1॥
English :
IAST :
Meaning :