सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी। नृपहि सराहत सब नर नारी॥ साधु सुजान सुसील नृपाला। ईस अंस भव परम कृपाला॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 27.4| |Caupāī 27.4
सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी। नृपहि सराहत सब नर नारी॥
साधु सुजान सुसील नृपाला। ईस अंस भव परम कृपाला॥4॥
भावार्थ:-सुकवि-कुकवि, सभी नर-नारी अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार राजा की सराहना करते हैं और साधु, बुद्धिमान, सुशील, ईश्वर के अंश से उत्पन्न कृपालु राजा-॥4॥
sukabi kukabi nija mati anuhārī. nṛpahi sarāhata saba nara nārī..
sādhu sujāna susīla nṛpālā. īsa aṃsa bhava parama kṛpālā..
all men and women extol the king according to his or her light. And the pious, sensible, amiable and supremely compassionate ruler, who takes his descent from a ray of God,-