सुक सनकादि भगत मुनि नारद। जे मुनिबर बिग्यान बिसारद॥ प्रनवउँ सबहि धरनि धरि सीसा। करहु कृपा जन जानि मुनीसा॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 17.3| | Caupāī 17.3
सुक सनकादि भगत मुनि नारद। जे मुनिबर बिग्यान बिसारद॥
प्रनवउँ सबहि धरनि धरि सीसा। करहु कृपा जन जानि मुनीसा॥3॥
भावार्थ:-शुकदेवजी, सनकादि, नारदमुनि आदि जितने भक्त और परम ज्ञानी श्रेष्ठ मुनि हैं, मैं धरती पर सिर टेककर उन सबको प्रणाम करता हूँ, हे मुनीश्वरों! आप सब मुझको अपना दास जानकर कृपा कीजिए॥3॥
suka sanakādi bhagata muni nārada. jē munibara bigyāna bisārada..
pranavauom sabahiṃ dharani dhari sīsā. karahu kṛpā jana jāni munīsā..
Suka, Sanaka and others (viz., Sanandana, Sanatana and Sanatkumara), sage Narada and all other eminent sages who are devotees of God and proficient in the spiritual lore, I make obeisance to all, placing my head on the ground; be gracious to me, O Lords of ascetics knowing me as your servant.