सुनि अति बिकल भरत बर बानी। आरति प्रीति बिनय नय सानी॥ सोक मगन सब सभाँ खभारू। मनहुँ कमल बन परेउ तुसारू॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
सुनि अति बिकल भरत बर बानी। आरति प्रीति बिनय नय सानी॥
सोक मगन सब सभाँ खभारू। मनहुँ कमल बन परेउ तुसारू॥1॥
भावार्थ:
अत्यन्त व्याकुल तथा दुःख, प्रेम, विनय और नीति में सनी हुई भरतजी की श्रेष्ठ वाणी सुनकर सब लोग शोक में मग्न हो गए, सारी सभा में विषाद छा गया। मानो कमल के वन पर पाला पड़ गया हो॥1॥
English :
IAST :
Meaning :