सुलभ सिद्धि सब प्राकृतहु राम कहत जमुहात। राम प्रानप्रिय भरत कहुँ यह न होइ बड़ि बात॥311॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
दोहा :
सुलभ सिद्धि सब प्राकृतहु राम कहत जमुहात।
राम प्रानप्रिय भरत कहुँ यह न होइ बड़ि बात॥311॥
भावार्थ:
जब एक साधारण मनुष्य को भी (आलस्य से) जँभाई लेते समय ‘राम’ कह देने से ही सब सिद्धियाँ सुलभ हो जाती हैं, तब श्री रामचन्द्रजी के प्राण प्यारे भरतजी के लिए यह कोई बड़ी (आश्चर्य की) बात नहीं है॥311॥
English :
IAST :
Meaning :