सो उमेस मोहि पर अनुकूला। करिहिं कथा मुद मंगल मूला॥ सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ। बस्नउँ रामचरित चित चाऊ॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 14(छ.4)| Caupai 14(cha.4)
सो उमेस मोहि पर अनुकूला।
करिहिं कथा मुद मंगल मूला॥
सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ। बस्नउँ रामचरित चित चाऊ॥4॥
भावार्थ:-वे उमापति शिवजी मुझ पर प्रसन्न होकर (श्री रामजी की) इस कथा को आनन्द और मंगल की मूल (उत्पन्न करने वाली) बनाएँगे। इस प्रकार पार्वतीजी और शिवजी दोनों का स्मरण करके और उनका प्रसाद पाकर मैं चाव भरे चित्त से श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूँ॥4॥
sō umēsa mōhi para anukūlā. karihiṃ kathā muda maṃgala mūlā..
sumiri sivā siva pāi pasāū. baranauom rāmacarita cita cāū..
That Lord of Uma (Parvati), favourable as He is to me, shall make this story of mine a source of blessings and joy. Thus invoking Lord Siva and His Consort, Siva (Parvati), and obtaining Their favour, I relate the exploits of Sri Rama with a heart full of ardour.