सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा। जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा॥ अब बिधि अस बूझिअ नहिं तोही। संकर बिमुख जिआवसि मोही॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (58.2) | Caupāī (58.2)
सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा। जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा॥
अब बिधि अस बूझिअ नहिं तोही। संकर बिमुख जिआवसि मोही॥2॥
भावार्थ:-उसका फल विधाता ने मुझको दिया, जो उचित था वही किया, परन्तु हे विधाता! अब तुझे यह उचित नहीं है, जो शंकर से विमुख होने पर भी मुझे जिला रहा है॥2॥
sō phalu mōhi bidhātāom dīnhā. jō kachu ucita rahā sōi kīnhā..
aba bidhi asa būjhia nahi tōhī. saṃkara bimukha jiāvasi mōhī..
Providence has repaid me for my sins and has done only that which I deserved. Now, O God, it does not behove you that you should make me survive even after alienating me from Sankara.