स्वाद तोष सम सुगति सुधा के। कमठ सेष सम धर बसुधा के॥ जन मन मंजु कंज मधुकर से। जीह जसोमति हरि हलधर से॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 19.4| |Caupāī 19.4
स्वाद तोष सम सुगति सुधा के। कमठ सेष सम धर बसुधा के॥
जन मन मंजु कंज मधुकर से। जीह जसोमति हरि हलधर से॥4॥
भावार्थ:-ये सुंदर गति (मोक्ष) रूपी अमृत के स्वाद और तृप्ति के समान हैं, कच्छप और शेषजी के समान पृथ्वी के धारण करने वाले हैं, भक्तों के मन रूपी सुंदर कमल में विहार करने वाले भौंरे के समान हैं और जीभ रूपी यशोदाजी के लिए श्री कृष्ण और बलरामजी के समान (आनंद देने वाले) हैं॥4॥
svāda tōṣa sama sugati sudhā kē. kamaṭha sēṣa sama dhara basudhā kē..
jana mana maṃju kaṃja madhukara sē. jīha jasōmati hari haladhara sē..
They are like the taste and the gratifying quality of nectar in the form of emancipation, and are supporters of the globe like the divine Tortoise and the serpent-god Sesa. Again, they are like bees for the beautiful lotus in the shape of the devotee’s mind and are the very like of Hari (Sri Krsna) and Haladhara (Balarama, who wielded a plough as a weapon) for Yasoda (Their foster- mother, the wife of Nanda) in the shape of the tongue. (4)