होहु प्रसन्न देहु बरदानू। साधु समाज भनिति सनमानू॥ जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 13.4| Caupai 13.4
होहु प्रसन्न देहु बरदानू।
साधु समाज भनिति सनमानू॥
जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं॥4॥
भावार्थ:-आप सब प्रसन्न होकर यह वरदान दीजिए कि साधु समाज में मेरी कविता का सम्मान हो, क्योंकि बुद्धिमान लोग जिस कविता का आदर नहीं करते, मूर्ख कवि ही उसकी रचना का व्यर्थ परिश्रम करते हैं॥4॥
hōhu prasanna dēhu baradānū. sādhu samāja bhaniti sanamānū..
jō prabaṃdha budha nahiṃ ādarahīṃ. sō śrama bādi bāla kabi karahīṃ..
Be propitious and grant this boon that my song may be honoured in the assemblage of pious souls. A composition which the wise refuse to honour is fruitless labour which only silly poets undertake.