अति हरष मन तन पुलक लोचन सजल कह पुनि पुनि रमा। का देउँ तोहि त्रैलोक महुँ कपि किमपि नहिं बानी समा॥ सुनु मातु मैं पायो अखिल जग राजु आजु न संसयं। रन जीति रिपुदल बंधु जुत पस्यामि राममनामयं॥
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