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श्री अयोध्या अवध महिमा (दशरथकृता) | Shri Ayodhya Avadha Mahima by Dashrath Ji

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श्री अयोध्या अवध महिमा (दशरथकृता) 

Shri Ayodhya Avadha Mahima by Dashrath Ji

 

श्रीशङ्कर उवाच ।
चैत्रे मासि च सम्प्राप्ते नवमी दिनमाश्रितः ।
योऽभिगच्छति वै भद्रे ह्ययोध्यां सरयूं प्रति ॥ १॥

फलं तत्राक्षयं देवि भवतीत्यनुशुश्रुम ।
सायं प्रातः स्मरेद्यस्तु ह्ययोध्यां च कृताञ्जलिः ।
उपस्पृष्टानि तीर्थानि त्वयोध्यायाश्चभामिनि ॥ २॥

विष्णोः पादमवन्तिकां गुणवतीं मध्यं च काँचीपुरीं
नाभि द्वारवतीं पठन्ति हृदयं मायापुरीं योगिनः ।
ग्रीवामूल मुदाहरन्ति मथुरां नासां च वाराणसी-
मेतद्ब्रह्मपदं वदन्ति मुनयोऽयोध्यापुरी मस्तकम् ॥ ३॥

जन्म प्रभृति यत्पापं स्त्रिया वा पुरुषस्य वा ।
अयोध्यास्नान मात्रेण सर्वमेव प्रणश्यति ॥ ४॥

यथा सुराणां सर्वेषामादिश्च मधुसूदनः ।
तथैव क्षेत्रतीर्थानामयोध्या त्वादिरुच्यते ॥ ५॥

 

इति श्रीअवधमहिमा समाप्ता ।
श्रीअयोद्ध्यामहिमा


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Shiv

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