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श्री राम स्तुति संग्रह

भद्रगिरिपति संस्तुतिः | Bhadragiripati Sanstuti

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भद्रगिरिपति संस्तुतिः | Bhadragiripati Sanstuti

 

धरणीतनया रमणी कमनीय सीताङ्क मनोहररूप हरे ।
भरताग्रज राघव दाशरथे विजयी भव भद्रगिरीन्द्रपते ॥ १॥

बुधलक्षणलक्षण सर्वविलक्षण लक्षणपूर्वज राम हरे ।
भवपाशविनाशक हे नृहरे विजयी भव भद्रगिरीन्द्रपते ॥ २॥

धरचक्र धनुश्शरदीप्त चतुष्करचक्रभवाद्यभवादिविभो ।
परचक्रभयङ्कर हे भगवन् विजयी भव भद्रगिरीन्द्रपते ॥ ३॥

अधिनीरजजन्मसुरेशमुनीन्द्रविलक्षणलक्षणदक्षपते ।
नवकन्धरसुन्दरदिव्यतनो विजयी भव भद्रगिरीन्द्रपते ॥ ४॥

सततः प्रततः प्रचरैः करुणा भरणै स्तव दिग्विसरैर्नमित ।
स्मरणाभिरतं भवतं सततं कुरु मामिह भद्रगिरीन्द्रपते ॥ ५॥

सचतुर्मुखषण्मुखपञ्चमुख प्रमुखाखिलदैवतमौलिमणे ।
शरणागतवत्सल सारनिधे परिपालय मां वृषशैलपते ॥ ६॥

अभिरामगुणाकर दाशरथे जगदेकदनुर्धर धीरमते ।
रघुनायक राम रमेश विभो वरदोभव देव दयाजलधे ॥ ७॥

इति भद्रगिरिपति संस्तुतिः समाप्ता ।


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Shiv

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