अति हरषु राजसमाज दुहु दिसि दुंदुभीं बाजहिं घनी। बरषहिं सुमन सुर हरषि कहि जय जयति जय रघुकुलमनी॥ एहि भाँति जानि बरात आवत बाजने बहु बाजहीं। रानी सुआसिनि बोलि परिछनि हेतु मंगल साजहीं॥
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