RamCharitManas (RamCharit.in)

इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

श्री दुर्गाजी स्तुति संग्रह

दुर्गासप्तशती पाठ अध्याय 3 : देवी दुर्गा द्वारा चिक्षुर, चामर सहित महिषासुर राक्षस का वध का वर्णन

Spread the Glory of Sri SitaRam!

दुर्गासप्तशती पाठ अध्याय 3

देवी दुर्गा द्वारा चिक्षुर, चामर सहित महिषासुर राक्षस का वध का वर्णन

॥ध्यानम्॥

ॐ उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां
रक्तालिप्तपयोधरां जपवटीं विद्यामभीतिं वरम्।
हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं
देवीं बद्धहिमांशुरत्‍नमुकुटां वन्देऽरविन्दस्थिताम्॥

ध्यान

जगदम्बाके श्रीअंगोकी कान्ति उदयकालके सहस्रों सूर्योंके समान है। वे लाल रंगकी रेशमी साड़ी पहने हुए हैं। उनके गलेमें मुण्डमाला शोभा पा रही है। दोनों स्तनोंपर रक्त चन्दनका लेप लगा है। वे अपने कर-कमलोंमें जपमालिका, विद्या और अभय तथा वर नामक मुद्राएँ धारण किये हुए हैं। तीन नेत्रोंसे सुशोभित मुखार विन्दकी बड़ी शोभा हो रही है। उनके मस्तकपर चन्द्रमाके साथ ही रत्नमय मुकुट बँधा है तथा वे कमलके आसन पर विराजमान हैं। ऐसी देवीको मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता (करती) हूँ।

सेनापति चिक्षुर का संहार

महिषासुर का सेनापति चिक्षुर युद्ध के लिए आया

ॐ ऋषिररुवाच॥१॥
निहन्यमानं तत्सैन्यमवलोक्य महासुरः।
सेनानीश्‍चिक्षुरः कोपाद्ययौ योद्‍धुमथाम्बिकाम्॥२॥

ऋषि कहते है – दैत्यों की सेना को इस प्रकार तहस-नहस होते देख महादैत्य सेनापति चिक्षुर क्रोध में भरकर अम्बिका देवीसे युद्ध करने के लिये आगे बढ़ा।

चिक्षुर दैत्य की बाणवर्षा

स देवीं शरवर्षेण ववर्ष समरेऽसुरः।
यथा मेरुगिरेः श्रृङ्‌गं तोयवर्षेण तोयदः॥३॥

वह असुर रणभूमि में देवी के ऊपर इस प्रकार बाणवर्षा करने लगा, जैसे बादल मेरुगिरि के शिखर पर पानी की धार बरसा रहा हो।

अम्बिकादेवी ने चिक्षुर के शस्त्रों को काट डाला

तस्यच्छित्त्वा ततो देवी लीलयैव शरोत्करान्।
जघान तुरगान् बाणैर्यन्तारं चैव वाजिनाम्॥४॥
चिच्छेद च धनुः सद्यो ध्वजं चातिसमुच्छ्रितम्।
विव्याध चैव गात्रेषु छिन्नधन्वानमाशुगैः॥५॥

तब देवी ने अपने बाणों से उसके बाण समूह को अनायास ही काटकर उसके घोड़ों और सारथि को भी मार डाला। साथ ही उसके धनुष तथा अत्यंत ऊंची ध्वजा को भी तत्काल काट गिराया। धनुष कट जाने पर उसके अंगों को अपने बाणों से बींध डाला।

चिक्षुर तलवार लेकर आगे बढ़ा

सच्छिन्नधन्वा विरथो हताश्‍वो हतसारथिः।
अभ्यधावत तां देवीं खड्‌गचर्मधरोऽसुरः॥६॥

धनुष, रथ, घोड़े और सारथि के नष्ट हो जाने पर वह असुर ढाल और तलवार लेकर देवी की ऒर दौड़ा।

चिक्षुर ने माँ दुर्गा के वाहन सिंह पर शस्त्र चलाया

सिंहमाहत्य खड्‌गेन तीक्ष्णधारेण मूर्धनि।
आजघान भुजे सव्ये देवीमप्यतिवेगवान्॥७॥

उसने तीखी धार वाली तलवार से सिंह के मस्तक पर चोट करके देवी की भी बायीं भुजा में बड़े वेग से प्रहार किया।

असुर के शस्त्र को देवी माँ ने काट दिया

तस्याः खड्‌गो भुजं प्राप्य पफाल नृपनन्दन।
ततो जग्राह शूलं स कोपादरुणलोचनः॥८॥

राजन्! देवी की बांह पर पहुंचते ही वह तलवार टूट गयी। फिर तो क्रोध से लाल आंखें करके उस राक्षस ने शूल हाथ में लिया।

चिक्षुर ने शूल चलाया

चिक्षेप च ततस्तत्तु भद्रकाल्यां महासुरः।
जाज्वल्यमानं तेजोभी रविबिम्बमिवाम्बरात्॥९॥

उस महादैत्य ने उस शूल को भगवती भद्रकाली के ऊपर चलाया। वह शूल आकाश से गिरते हुए सूर्यमंडल की भाँति अपने तेज से प्रज्वलित हो उठा।

माँ अम्बिका ने सेनापति चिक्षुर का संहार किया

दृष्ट्‍वा तदापतच्छूलं देवी शूलममुञ्चत।
तच्छूलं* शतधा तेन नीतं स च महासुरः॥१०॥

उस शूल को अपनी ऒर आते देख देवी ने भी शूल का प्रहार किया। उससे राक्षस के शूल के सैकड़ों टुकड़े हो गए, साथ ही महादैत्य चिक्षुर की भी धज्जियां उड़ गईं। वह प्राणों से हाथ धो बैठा।

चामर का वध
अब चामर दैत्य युद्ध करने के लिए आया

हते तस्मिन्महावीर्ये महिषस्य चमूपतौ।
आजगाम गजारूढश्‍चामरस्त्रिदशार्दनः॥११॥

महिषासुर के सेनापति उस महापराक्रमी चिक्षुर के मारे जाने पर देवताऒं को पीड़ा देनेवाला चामर हाथी पर चढ़कर आया।

माँ दुर्गा ने चामर के शक्ति अस्त्र को निष्प्रभ किया

सोऽपि शक्तिं मुमोचाथ देव्यास्तामम्बिका द्रुतम्।
हुंकाराभिहतां भूमौ पातयामास निष्प्रभाम्॥१२॥

उसने भी देवी के ऊपर शक्ति का प्रहार किया, किंतु जगदम्बा ने उसे अपने हुंकार से ही आहत एवं निष्प्रभ करके पृथ्वी पर गिरा दिया।

माँ जगदम्बा ने चामर के शूल को भी काट डाला

भग्नां शक्तिं निपतितां दृष्ट्‌वा क्रोधसमन्वितः।
चिक्षेप चामरः शूलं बाणैस्तदपि साच्छिनत्॥१३॥

शक्ति टूटकर गिरी हुई देख चामर को बड़ा क्रोध हुआ। अब उसने शूल चलाया किंतु देवी ने उसे भी अपने बाणों द्वारा काट डाला।

देवी माँ के वाहन सिंह का चामर से युद्ध

ततः सिंहः समुत्पत्य गजकुम्भान्तरे स्थितः।
बाहुयुद्धेन युयुधे तेनोच्चैस्त्रिदशारिणा॥१४॥

इतने में ही देवी का सिंह उछलकर हाथी के मस्तकपर चढ़ बैठा और उस दैत्य के साथ खूब जोर लगाकर बाहुयुद्ध करने लगा।

सिंह का चामर से युद्ध

युद्ध्यमानौ ततस्तौ तु तस्मान्नागान्महीं गतौ।
युयुधातेऽतिसंरब्धौ प्रहारैरतिदारुणैः॥१५॥

वे दोनों लड़ते-लड़ते हाथी से पृथ्वीपर आ गए और क्रोध में भरकर एक-दूसरे पर बड़े भयंकर प्रहार करते हुए लडऩे लगे।

देवी माँ के सिंह ने चामर का वध किया

ततो वेगात् खमुत्पत्य निपत्य च मृगारिणा।
करप्रहारेण शिरश्‍चामरस्य पृथक्कृतम्॥१६॥

उसके बाद सिंह बड़े वेग से आकाश की ऒर उछला और उधर से गिरते समय उसने पंजों की मार से चामर का सिर धड़ से अलग कर दिया।

माँ जगदम्बा ने, उदग्र, कराल आदि दूसरे राक्षसों का संहार किया

उदग्रश्‍च रणे देव्या शिलावृक्षादिभिर्हतः।
दन्तमुष्टितलैश्‍चैव करालश्‍च निपातितः॥१७॥

इसी प्रकार उदग्र भी शिला और वृक्ष आदि की मार खाकर रणभूमि में देवी के हाथसे मारा गया। कराल भी दाँतों, मुक्कों और थपड़ों की चोट से धराशायी हो गया।

माँ भगवती ने दूसरे राक्षसों का भी संहार किया

देवी क्रुद्धा गदापातैश्‍चूर्णयामास चोद्धतम्।
बाष्कलं भिन्दिपालेन बाणैस्ताम्रं तथान्धकम्॥१८॥

क्रोध में भरी हुई देवी ने गदा की चोट से उद्धत का कचूमर निकाल डाला। भिदिपाल से वाष्कल को तथा बाणों से ताम्र और अधक को मौत के घाट उतार दिया।

माँ परमेश्वरि ने कई असुरों को मार डाला

उग्रास्यमुग्रवीर्यं च तथैव च महाहनुम्।
त्रिनेत्रा च त्रिशूलेन जघान परमेश्वरी॥१९॥

तीन नेत्रों वाली परमेश्वरी ने त्रिशूल से उग्रास्य, उग्रवीर्य तथा महाहनु नामक दैत्य को मार डाला।

देवि माँ ने दुर्मुख और दुर्धर राक्षसों को यमलोक भेजा

बिडालस्यासिना कायात्पातयामास वै शिरः।
दुर्धरं दुर्मुखं चोभौ शरैर्निन्ये यमक्षयम्*॥२०॥

तलवार की चोट से विडाल के मस्तक को धड़ से काट गिराया। दुर्धर और दुर्मुख इन दोनों को भी अपने बाणों से यमलोक भेज दिया।

महिषासुर का वध
महिषासुर ने भैंसे का रूप धारण किया

एवं संक्षीयमाणे तु स्वसैन्ये महिषासुरः।
माहिषेण स्वरूपेण त्रासयामास तान् गणान्॥२१॥

इस प्रकार अपनी सेना का संहार होता देख महिषासुर ने भैंसे का रूप धारण करके देवी के गणों पर प्रहार आरम्भ किया।

महिषासुर का भैंसे के रूप में युद्ध

कांश्‍चित्तुण्डप्रहारेण खुरक्षेपैस्तथापरान्।
लाङ्‌गूलताडितांश्‍चान्याञ्छृङ्‌गाभ्यां च विदारितान्॥२२॥
वेगेन कांश्‍चिदपरान्नादेन भ्रमणेन च।
निःश्वासपवनेनान्यान् पातयामास भूतले॥२३॥

महिषासुर थूथुन से मारकर, खुरों का प्रहार करके, पूंछ से चोट पहुंचाकर, सींगों से विदीर्ण करके, कुछ को सिंहनाद से, कुछ को चक्कर देकर और नि:श्वास-वायु के झोंके से देवी के गणों को धराशायी कर दिया।

महिषासुर देवी माँ से युद्ध के लिए बढ़ा

निपात्य प्रमथानीकमभ्यधावत सोऽसुरः।
सिंहं हन्तुं महादेव्याः कोपं चक्रे ततोऽम्बिका॥२४॥

इस प्रकार गणों की सेना को गिराकर वह असुर महादेवी के सिंह को मारने के लिए झपटा। इससे जगदम्बा को बड़ा क्रोध हुआ।

महिषासुर दैत्य का क्रोध

सोऽपि कोपान्महावीर्यः खुरक्षुण्णमहीतलः।
श्रृङ्‌गाभ्यां पर्वतानुच्चांश्चिक्षेप च ननाद च॥२५॥

उधर महापराक्रमी महिषासुर भी क्रोध में भरकर धरती को खुरों से खोदने लगा। अपने सींगों से ऊंचे-ऊंचे पर्वतों को उठाकर फेंकने और गर्जने लगा।

महिषासुर दैत्य के क्रोध का धरती और सागर पर असर

वेगभ्रमणविक्षुण्णा मही तस्य व्यशीर्यत।
लाङ्‌गूलेनाहतश्‍चाब्धिः प्लावयामास सर्वतः॥२६॥

उसके वेग से चक्कर देने के कारण पृथ्वी क्षुब्ध होकर फटने लगी। उसकी पूंछ से टकराकर समुद्र सब ऒर से धरती को डुबोने लगा।

महिषासुर दैत्य के क्रोध का आकाश पर असर

धुतश्रृङ्‌गविभिन्नाश्‍च खण्डं* खण्डं ययुर्घनाः।
श्‍वासानिलास्ताः शतशो निपेतुर्नभसोऽचलाः॥२७॥

हिलते हुए सींगों के आघात से विदीर्ण होकर बादलों के टुकड़े-टुकड़े हो गए। उसके श्वास की प्रचंड वायु के वेग से उड़े हुए सैकड़ों पर्वत आकाश से गिरने लगे।

महिषासुर ने सिंह का रूप धारण किया

इति क्रोधसमाध्मातमापतन्तं महासुरम्।
दृष्ट्‌वा सा चण्डिका कोपं तद्वधाय तदाकरोत्॥२८॥
सा क्षिप्त्वा तस्य वै पाशं तं बबन्ध महासुरम्।
तत्याज माहिषं रूपं सोऽपि बद्धो महामृधे॥२९॥

इस प्रकार क्रोधमें भरे हुए उस महादैत्य को अपनी ऒर आते देख चंडिका ने उसका वध करने के लिए महान क्रोध किया। उन्होंने पाश फेंककर उस महान असुर को बांध लिया। उस महासंग्राम में बँध जाने पर उसने भैंसे का रूप त्यागकर तत्काल सिंह के रूप में प्रकट हो गया।

महिषासुर खड्गधारी पुरुष के रूप में

ततः सिंहोऽभवत्सद्यो यावत्तस्याम्बिका शिरः।
छिनत्ति तावत्पुरुषः खड्‌गपाणिरदृश्यत॥३०॥

उस अवस्था में जगदम्बा ज्योंही उसका मस्तक काटने के लिए उद्दत हुईं, त्योंही वह खड्गधारी पुरुष के रूप में दिखायी देने लगा।

महिषासुर हाथी के रूप में

तत एवाशु पुरुषं देवी चिच्छेद सायकैः।
तं खड्‌गचर्मणा सार्धं ततः सोऽभून्महागजः॥३१॥

तब देवी ने तुरंत ही बाणों की वर्षा करके, ढाल और तलवार के साथ उस पुरुष को भी बींध डाला। इतने में ही वह महान गजराज के रूप में परिणत हो गया।

देवी ने हाथीरुपी महिषासुर की सूंड काटी

करेण च महासिंहं तं चकर्ष जगर्ज च।
कर्षतस्तु करं देवी खड्‌गेन निरकृन्तत॥३२॥

वह अपनी सूंड़ से देवी के विशाल सिंह को खींचने और गर्जने लगा। खींचते समय देवी ने तलवार से उसकी सूँड़ काट डाली।

महिषासुर फिर से भैंसे के रूप में

ततो महासुरो भूयो माहिषं वपुरास्थितः।
तथैव क्षोभयामास त्रैलोक्यं सचराचरम्॥३३॥

तब उस महादैत्य ने पुन: भैंसे का शरीर धारण कर लिया और पहले की ही भांति चराचर प्राणियों सहित तीनों लोकों को व्याकुल करने लगा।

चंडिका माँ का मधुपान और क्रोध

ततः क्रुद्धा जगन्माता चण्डिका पानमुत्तमम्।
पपौ पुनः पुनश्‍चैव जहासारुणलोचना॥३४॥

तब क्रोध में भरी हुई जगत माता चंडिका बारंबार उत्तम मधु का पान करने और लाल आंखें करके हंसने लगीं।

घमंडी महिषासुर का देवी से युद्ध

ननर्द चासुरः सोऽपि बलवीर्यमदोद्‌धतः।
विषाणाभ्यां च चिक्षेप चण्डिकां प्रति भूधरान्॥३५॥

उधर वह बल और पराक्रम के मद से उमड़ा हुआ राक्षस गर्जने लगा और अपने सींगों से चंडी के ऊपर पर्वतों को फेंकने लगा।

माँ चंडी का क्रोधित स्वरुप

सा च तान् प्रहितांस्तेन चूर्णयन्ती शरोत्करैः।
उवाच तं मदोद्‌धूतमुखरागाकुलाक्षरम्॥३६॥

उस समय देवी अपने बाणों के समूहों से उसके फेंके हुए पर्वतों को चूर्ण करती हुई बोली। बोलते समय उनका मुख मधु के मद से लाल हो रहा था और वाणी लडख़ड़ा रही थी।

माँ भगवती का मधुपान

देव्युवाच॥३७॥
गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत्पिबाम्यहम्।
मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवताः॥३८॥

देवीने कहा – ऒ मूढ़! मैं जब तक मधु पीती हूँ, तब तक तू क्षणभर के लिए खूब गर्जना कर ले।

मेरे हाथ से यही तेरी मृत्यु हो जाने पर
अब शीघ्र ही देवता भी गर्जना करेंगे।

महादैत्य महिषासुर, माँ भगवती के पैरों के निचे

ऋषिरुवाच॥३९॥
एवमुक्त्वा समुत्पत्य साऽऽरूढा तं महासुरम्।
पादेनाक्रम्य कण्ठे च शूलेनैनमताडयत्॥४०॥

ऋषि कहते हैं – इतना कहकर देवी उछली और उस महादैत्य के ऊपर चढ़ गईं। फिर अपने पैर से उसे दबाकर उन्होंने शूल से उसके कंठ में आघात किया।

महिषासुर का फिर से प्रयत्न

ततः सोऽपि पदाऽऽक्रान्तस्तया निजमुखात्ततः।
अर्धनिष्क्रान्त एवासीद्* देव्या वीर्येण संवृतः॥४१॥

उनके पैर से दबा होने पर भी महिषासुर अपने मुख से दूसरे रूपमें बाहर होने लगा। अभी आधे शरीर से ही वह बाहर निकलने पाया था कि देवीने अपने प्रभावसे उसे रोक दिया।

माँ दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया

अर्धनिष्क्रान्त एवासौ युध्यमानो महासुरः।
तया महासिना देव्या शिरश्छित्त्वा निपातितः*॥४२॥

आधा निकला होने पर भी वह महादैत्य देवी से युद्ध करने लगा। तब देवी ने बहुत बड़ी तलवार से उसका मस्तक काट गिराया। महिषासुर के संहार के कारण देवता प्रसन्न हुए

ततो हाहाकृतं सर्वं दैत्यसैन्यं ननाश तत्।
प्रहर्षं च परं जग्मुः सकला देवतागणाः॥४३॥

फिर तो हाहाकार करती हुई दैत्यों की सारी सेना भाग गई तथा देवता अत्यंत प्रसन्न हो गए।

देवताओं ने देवी की स्तुति की

तुष्टुवुस्तां सुरा देवीं सह दिव्यैर्महर्षिभिः।
जगुर्गन्धर्वपतयो ननृतुश्‍चाप्सरोगणाः॥ॐ॥४४॥

देवताऒंने दिव्य महर्षियों के साथ दुर्गा देवी की स्तुति की। गंधर्वराज गाने लगे तथा असराएं नृत्य करने लगीं।

महिषासुरवध नामक तीसरा अध्याय समाप्त

इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये महिषासुरवधो नाम तृतीयोऽध्यायः॥३॥

इस प्रकार श्रीमार्कंडेय पुराण में सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत, देवी माहाम्य में महिषासुरवध नामक तीसरा


Spread the Glory of Sri SitaRam!

Shiv

शिव RamCharit.in के प्रमुख आर्किटेक्ट हैं एवं सनातन धर्म एवं संस्कृत के सभी ग्रंथों को इंटरनेट पर निःशुल्क और मूल आध्यात्मिक भाव के साथ कई भाषाओं में उपलब्ध कराने हेतु पिछले 8 वर्षों से कार्यरत हैं। शिव टेक्नोलॉजी पृष्ठभूमि के हैं एवं सनातन धर्म हेतु तकनीकि के लाभकारी उपयोग पर कार्यरत हैं।

One thought on “दुर्गासप्तशती पाठ अध्याय 3 : देवी दुर्गा द्वारा चिक्षुर, चामर सहित महिषासुर राक्षस का वध का वर्णन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सत्य सनातन फाउंडेशन (रजि.) भारत सरकार से स्वीकृत संस्था है। हिन्दू धर्म के वैश्विक संवर्धन-संरक्षण व निःशुल्क सेवाकार्यों हेतु आपके आर्थिक सहयोग की अति आवश्यकता है! हम धर्मग्रंथों को अनुवाद के साथ इंटरनेट पर उपलब्ध कराने हेतु अग्रसर हैं। कृपया हमें जानें और सहयोग करें!

X
error: