RamCharitManas (RamCharit.in)

इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

श्री दुर्गाजी स्तुति संग्रह

दुर्गासप्तशती पाठ अध्याय 6 : देवी ने किस प्रकार धूम्रलोचन नामक राक्षस का वध किया

Spread the Glory of Sri SitaRam!

दुर्गासप्तशती पाठ अध्याय 6 :

देवी ने किस प्रकार धूम्रलोचन नामक राक्षस का वध किया

॥ध्यानम्॥

ॐ नागाधीश्‍वरविष्टरां फणिफणोत्तंसोरुरत्‍नावली-
भास्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम्।
मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परां
सर्वज्ञेश्‍वरभैरवाङ्‌कनिलयां पद्मावतीं चिन्तये॥

ध्यान

मैं सर्वज्ञेश्वर भैरवके अंगमें निवास करनेवाली, परमोत्कृष्ट पद्मावती देवीका चिन्तन करता (करती) हूँ। वे नागराजके आसनपर बैठी हैं, नागोंके फणों में सुशोभित होने वाली मणियोंकी विशाल माला से उनकी देहलता सुशोभित हो रही है। सूर्यके समान उनका तेज है, तीन नेत्र उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। वे हाथोंमें माला, कुम्भ, कपाल और कमल लिये हुए हैं तथा उनके मस्तकमें अर्धचन्द्रका मुकुट सुशोभित है।

दैत्य धूम्रलोचन का संहार

ॐ ऋषिरुवाच॥१॥
इत्याकर्ण्य वचो देव्याः स दूतोऽमर्षपूरितः।
समाचष्ट समागम्य दैत्यराजाय विस्तरात्॥२॥

ऋषि कहते हैं – देवीका यह कथन सुनकर दूतको बड़ा अमर्ष हुआ और उसने दैत्यराजके पास जाकर, सब समाचार विस्तारपूर्वक कह सुनाया।

दूत से संदेश सुनकर शुम्भ को क्रोध

तस्य दूतस्य तद्वाक्यमाकर्ण्यासुरराट् ततः।
सक्रोधः प्राह दैत्यानामधिपं धूम्रलोचनम्॥३॥

दूतके उस वचनको सुनकर दैत्यराज कुपित हो उठा और दैत्यसेनापति धूम्रलोचनसे बोला।

शुम्भ धूम्रलोचन को देवी के पास जाने के लिए कहता है

हे धूम्रलोचनाशु त्वं स्वसैन्यपरिवारितः।
तामानय बलाद् दुष्टां केशाकर्षणविह्वलाम्॥४॥

धूम्रलोचन! तुम शीघ्र अपनी सेना साथ लेकर जाओ और उसके केश पकड़कर घसीटते हुए, उसे बलपूर्वक यहाँ ले आओ।

शुम्भ धूम्रलोचन को देवी से युद्ध के लिए आदेश देता है

तत्परित्राणदः कश्‍चिद्यदि वोत्तिष्ठतेऽपरः।
स हन्तव्योऽमरो वापि यक्षो गन्धर्व एव वा॥५॥

उसकी रक्षा करनेके लिये, यदि कोई दूसरा खड़ा हो, तो वह देवता, यक्ष अथवा गन्धर्व ही क्यों न हो, उसे अवश्य मार डालना।

धूम्रलोचन सेनाके साथ माँ अम्बिका के पास जाता है

ऋषिरुवाच॥६॥
तेनाज्ञप्तस्ततः शीघ्रं स दैत्यो धूम्रलोचनः।
वृतः षष्ट्या सहस्राणामसुराणां द्रुतं ययौ॥७॥

ऋषि कहते हैं – शुम्भके इस प्रकार आज्ञा देनेपर वह धूम्रलोचन दैत्य साठ हजार असुरोंकी सेनाको साथ लेकर वहाँसे तुरंत चल दिया।

धूम्रलोचन देवी को शुम्भ के पास चलने के लिए कहता है

स दृष्ट्‌वा तां ततो देवीं तुहिनाचलसंस्थिताम्।
जगादोच्चैः प्रयाहीति मूलं शुम्भनिशुम्भयोः॥८॥

वहाँ पहुँचकर उसने हिमालयपर रहनेवाली देवीको देखा और ललकारकर कहा – अरी! तू शम्भ-निश्स्म्भके पास चल।

धूम्रलोचन के अज्ञानी वचन

न चेत्प्रीत्याद्य भवती मद्भर्तारमुपैष्यति।
ततो बलान्नयाम्येष केशाकर्षणविह्वलाम्॥९॥

यदि इस समय प्रसत्रतापूर्वक मेरे स्वामीके समीप नहीं चलेगी, तो मैं बलपूर्वक पकड़कर घसीटते हुए, तुझे ले चलूँगा।

धूम्रलोचन देवी के साथ युद्ध के लिए आगे बढ़ता है

देव्युवाच॥१०॥
दैत्येश्‍वरेण प्रहितो बलवान् बलसंवृतः।
बलान्नयसि मामेवं ततः किं ते करोम्यहम्॥११॥

देवी बोलीं – तुम्हें दैत्योंके राजाने भेजा है, तुम स्वयं भी बलवान् हो और तुम्हारे साथ विशाल सेना भी है; ऐसी दशामें, यदि मुझे बलपूर्वक ले चलोगे, तो मैं तुम्हारा क्या कर सकती हूँ?।

देवी माँ धूम्रलोचन को भस्म कर देती है

ऋषिरुवाच॥१२॥
इत्युक्तः सोऽभ्यधावत्तामसुरो धूम्रलोचनः।
हुंकारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका ततः॥१३॥

ऋषि कहते हैं – देवीके यों कहनेपर असुर धूम्रलोचन उनकी ओर दौड़ा, तब अम्बिका ने “हुं” शब्दके उच्चारणमात्रसे उसे भस्म कर दिया।

देवी का क्रोध

अथ क्रुद्धं महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका।
ववर्ष सायकैस्तीक्ष्णैस्तथा शक्तिपरश्‍वधैः॥१४॥

फिर तो क्रोधमें भरी हुई दैत्योंकी विशाल सेना और अम्बिकाने एक-दूसरेपर तीखे शस्त्रों, शक्तियों तथा फरसोंकी वर्षा आरम्भ की।

देवीके वाहन सिंह का असुरों के साथ युद्ध

ततो धुतसटः कोपात्कृत्वा नादं सुभैरवम्।
पपातासुरसेनायां सिंहो देव्याः स्ववाहनः॥१५॥

इतनेमें ही देवीका वाहन सिंह क्रोधमें भरकर भयंकर गर्जना करके गर्दनके बालोंको हिलाता हुआ असुरोंकी सेनामें कूद पड़ा।

सिंह का दैत्यों का संहार

कांश्‍चित् करप्रहारेण दैत्यानास्येन चापरान्।
आक्रम्य चाधरेणान्यान्‌ स जघान महासुरान्॥१६॥

उसने कुछ दैत्योंको पंजोंकी मारसे, कितनोंको अपने जबड़ोंसे और कितने ही महादैत्योंको पटककर, ओठकी दाढोसे घायल करके मार डाला।

सिंह ने कई दैत्यों को मार डाला

केषांचित्पाटयामास नखैः कोष्ठानि केसरी।
तथा तलप्रहारेण शिरांसि कृतवान् पृथक्॥१७॥

उस सिंहने अपने नखोंसे कितनोंके पेट फाड़ डाले और थप्पड मारकर कितनोंके सिर धडसे अलग कर दिये।

देवीके वाहन सिंह ने, असुरों की सेना का संहार किया

विच्छिन्नबाहुशिरसः कृतास्तेन तथापरे।
पपौ च रुधिरं कोष्ठादन्येषां धुतकेसरः॥१८॥

और कितनोंकी भुजाएँ और मस्तक काट डाले तथा अपनी गर्दनके बाल हिलाते हुए उसने दूसरे दैत्योंके पेट फाड़कर उनका रक्त चूस लिया।

देवी के वाहन सिंह का पराक्रम

क्षणेन तद्‌बलं सर्वं क्षयं नीतं महात्मना।
तेन केसरिणा देव्या वाहनेनातिकोपिना॥१९॥

अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए देवीके वाहन उस महाबली सिंह ने क्षणभर में ही असुरोंकी सारी सेनाका संहार कर डाला।

शुम्भ को, धूम्रलोचन के वध का पता चलता है

श्रुत्वा तमसुरं देव्या निहतं धूम्रलोचनम्।
बलं च क्षयितं कृत्स्नं देवीकेसरिणा ततः॥२०॥

शुम्भने जब सुना कि देवीने धूम्रलोचन असुरको मार डाला तथा उसके सिंहने सारी सेनाका सफाया कर डाला,

शुम्भ चण्ड-मुण्ड को बुलाता है

चुकोप दैत्याधिपतिः शुम्भः प्रस्फुरिताधरः।
आज्ञापयामास च तौ चण्डमुण्डौ महासुरौ॥२१॥

तब उस दैत्यराजको बड़ा क्रोध हुआ। उसका ओठ काँपने लगा। उसने चण्ड और मुण्ड नामक दो महादैत्योंको आज्ञा दी। शुम्भ चण्ड-मुण्ड को देवी के साथ युद्ध के लिए भेजता है

हे चण्ड हे मुण्ड बलैर्बहुभिः परिवारितौ।
तत्र गच्छत गत्वा च सा समानीयतां लघु॥२२॥

हे चण्ड! और हे मुण्ड! तुम लोग बहुत बड़ी सेना लेकर वहाँ जाओ, उस देवीको पकड़कर अथवा उसे बाँधकर शीघ्र यहाँ ले आओ।

अहंकारी शुम्भ के अज्ञानी वचन

केशेष्वाकृष्य बद्ध्वा वा यदि वः संशयो युधि।
तदाशेषायुधैः सर्वैरसुरैर्विनिहन्यताम्॥२३॥

यदि इस प्रकार उसको लानेमें संदेह हो तो युद्धमें सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्रों तथा समस्त आसुरी सेनाका प्रयोग करके उसकी हत्या कर डालना।

शुम्भ का चण्ड और मुण्ड को आदेश

तस्यां हतायां दुष्टायां सिंहे च विनिपातिते।
शीघ्रमागम्यतां बद्ध्वा गृहीत्वा तामथाम्बिकाम्॥ॐ॥२४॥

उसकी हत्या होने तथा सिंहके भी मारे जानेपर, उस अम्बिकाको बाँधकर साथ ले शीघ्र ही लौट आना।

छठा अध्याय समाप्त

इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये शुम्भनिशुम्भसेनानीधूम्रलोचनवधो नाम षष्ठोऽध्यायः॥६॥

इस प्रकार श्रीमार्कंडेय पुराण में, सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत, देवीमाहाम्य में छठा अध्याय पूरा हुआ।


Spread the Glory of Sri SitaRam!

Shiv

शिव RamCharit.in के प्रमुख आर्किटेक्ट हैं एवं सनातन धर्म एवं संस्कृत के सभी ग्रंथों को इंटरनेट पर निःशुल्क और मूल आध्यात्मिक भाव के साथ कई भाषाओं में उपलब्ध कराने हेतु पिछले 8 वर्षों से कार्यरत हैं। शिव टेक्नोलॉजी पृष्ठभूमि के हैं एवं सनातन धर्म हेतु तकनीकि के लाभकारी उपयोग पर कार्यरत हैं।

One thought on “दुर्गासप्तशती पाठ अध्याय 6 : देवी ने किस प्रकार धूम्रलोचन नामक राक्षस का वध किया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

उत्कृष्ट व निःशुल्क सेवाकार्यों हेतु आपके आर्थिक सहयोग की अति आवश्यकता है! आपका आर्थिक सहयोग हिन्दू धर्म के वैश्विक संवर्धन-संरक्षण में सहयोगी होगा। RamCharit.in व SatyaSanatan.com धर्मग्रंथों को अनुवाद के साथ इंटरनेट पर उपलब्ध कराने हेतु अग्रसर हैं। कृपया हमें जानें और सहयोग करें!

X
error: