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श्री दुर्गाजी स्तुति संग्रह

ललितापञ्चकम् (ललिता पंचकम्) स्तोत्र हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित | Lalitha Panchakam Stotram Lyrics in Sanskrit English

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ललितापञ्चकम् (ललिता पंचकम्) स्तोत्र हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित

 

प्रातः स्मरामि ललितावदनारविन्दं
विम्बाधरं पृथुलमौक्तिकशोभिनासम्।
आकर्णदीर्घनयनं मणिकुण्डलाढ्यं
मन्दस्मितं मृगमदोज्ज्वलभालदेशम्॥१॥

prātaḥ smarāmi lalitāvadanāravindaṃ
vimbādharaṃ pṛthulamauktikaśobhināsam।
ākarṇadīrghanayanaṃ maṇikuṇḍalāḍhyaṃ
mandasmitaṃ mṛgamadojjvalabhāladeśam॥1॥

मैं प्रातःकाल श्रीललितादेवी के उस मनोहर मुखकमल का स्मरण करता हूँ, जिनके बिम्बसमान रक्तवर्ण अधर, विशाल मौक्तिक (मोती के बुलाक) से सुशोभित नासिका और कर्णपर्यन्त फैले हुए विस्तीर्ण नयन हैं, जो मणिमय कुण्डल और मन्द मुसकान से युक्त हैं तथा जिनका ललाट कस्तूरिका तिलक से सुशोभित है॥१॥

I meditate in the morning, On the lotus face of Lalitha, Whose lips are red as the pomegranate, Who has nose shining like a pearl, Whose beautiful long eyes which extend to the ears, Who has ear drops made of very precious gems,
Who has a very subtle pleasant smile, Her forehead glows with a mark of perfume. || 1 ||

प्रातर्भजामि ललिताभुजकल्पवल्लीं
रक्ताङ्गलीयलसदङ्गलिपल्लवाढ्याम्।
माणिक्यहेमवलयाङ्गदशोभमानां
पुण्ड्रेक्षुचापकुसुमेषुसृणीदधानाम्॥२॥

prātarbhajāmi lalitābhujakalpavallīṃ
raktāṅgalīyalasadaṅgalipallavāḍhyām।
māṇikyahemavalayāṅgadaśobhamānāṃ
puṇḍrekṣucāpakusumeṣusṛṇīdadhānām॥2॥

मैं श्रीललितादेवी की भुजारूपिणी कल्पलता का प्रातःकाल स्मरण करता हूँ जो लाल अंगूठी से सुशोभित सुकोमल अंगुलिरूप पल्लवों वाली तथा रत्नखचित सुवर्णकं कण और अंगदादि से भूषित है एवं जिसने पुण्ड्र-ईख के धनुष, पुष्पमय बाण और अंकुश धारण किये हैं॥ २॥

I salute in the morning, That Lalitha whose hand, Is like a wish giving climbing plant, Who wears shining gem studded rings, Who wears golden bangles with precious stones, Who holds a bow of flowers, And who has a goad in her hands. || 2 ||

प्रातर्नमामि ललिताचरणारविन्दं
भक्तेष्टदाननिरतं भवसिन्धुपोतम्।
पद्मासनादिसुरनायकपूजनीयं
पद्माङ्कशध्वजसुदर्शनलाञ्छनाढ्यम्॥३॥

prātarnamāmi lalitācaraṇāravindaṃ
bhakteṣṭadānanirataṃ bhavasindhupotam।
padmāsanādisuranāyakapūjanīyaṃ
padmāṅkaśadhvajasudarśanalāñchanāḍhyam॥3॥

मैं श्रीललितादेवी के चरणकमलों को, जो भक्तों को अभीष्ट फल देने वाले और संसारसागर के लिये सुदृढ़ जहाजरूप हैं तथा कमलासन श्रीब्रह्माजी आदि देवेश्वरों से पूजित और पद्म, अंकुश, ध्वज एवं सुदर्शनादि मंगलमय चिह्नों से युक्त हैं, प्रातःकाल नमस्कार करता हूँ॥३॥

I worship in the morning, The lotus-like feet of Lalitha, Which blesses her devotees with their wishes, Which is a boat which helps them cross the samsara, And who is worshipped by leaders of devas. Sitting in the lotus posture,
And who holds lotus, goad, and flag And the wheel in her hands. || 3 ||

 

Lalitha Panchakam Stotram Lyrics in Sanskrit English

 

प्रातः स्तुवे परशिवां ललितां भवानी
त्रय्यन्तवेद्यविभवां करुणानवद्याम्।
विश्वस्य सृष्टिविलयस्थितिहेतुभूतां
विद्येश्वरीं निगमवाङ्मनसातिदूराम्॥४॥

prātaḥ stuve paraśivāṃ lalitāṃ bhavānī
trayyantavedyavibhavāṃ karuṇānavadyām।
viśvasya sṛṣṭivilayasthitihetubhūtāṃ
vidyeśvarīṃ nigamavāṅmanasātidūrām॥4॥

मैं प्रातःकाल परमकल्याणरूपिणी श्रीललिता भवानी की स्तुति करता हूँ जिनका वैभव वेदान्तवेद्य है, जो करुणामयी होने से शुद्धस्वरूपा हैं, विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और लय की मुख्य हेतु हैं, विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा वेद, वाणी और मन की गति से अति दूर हैं॥ ४॥

I pray in the morning, that Lalitha Who is the supreme giver of life, Who is the Devi who is the slayer of arrogance,
Whose power and protection resides in the Vedas, Who is the pure and auspicious form of mercy, Who is the cause of creation, sustenance and destruction, Beyond scripture, speech, mind and intellect. || 4 ||

प्रातर्वदामि ललिते तव पुण्यनाम
कामेश्वरीति कमलेति महेश्वरीति।
श्रीशाम्भवीति जगतां जननी परेति
वाग्देवतेति वचसा त्रिपुरेश्वरीति॥५॥

prātarvadāmi lalite tava puṇyanāma
kāmeśvarīti kamaleti maheśvarīti।
śrīśāmbhavīti jagatāṃ jananī pareti
vāgdevateti vacasā tripureśvarīti॥5॥

हे ललिते! मैं तेरे पुण्यनाम कामेश्वरी, कमला, महेश्वरी, शाम्भवी, जगज्जननी, परा, वाग्देवी तथा त्रिपुरेश्वरी आदि का प्रातःकाल अपनी वाणी द्वारा उच्चारण करता हूँ॥ ५॥

I repeat in the morning your holy names, Lalitha, As the Devi of passion and love, As one who sits on the lotus,
As the Supreme Deity, As the Mother of the world, As the Devi of words and language, And as the one who is the Devi of the three cities.|| 5 ||

यः श्लोकपञ्चकमिदं ललिताम्बिकायाः
सौभाग्यदं सुललितं पठति प्रभाते।
तस्मै ददाति ललिता झटिति प्रसन्ना
विद्यां श्रियं विमलसौख्यमनन्तकीर्तिम्॥६॥

yaḥ ślokapañcakamidaṃ lalitāmbikāyāḥ
saubhāgyadaṃ sulalitaṃ paṭhati prabhāte।
tasmai dadāti lalitā jhaṭiti prasannā
vidyāṃ śriyaṃ vimalasaukhyamanantakīrtim॥6॥

माता ललिता के अति सौभाग्यप्रद और सुललित इन पाँच श्लोकों को जो पुरुष प्रातःकाल पढ़ता है, उसे शीघ्र ही प्रसन्न होकर ललितादेवी विद्या, धन, निर्मल सुख और अनन्त कीर्ति देती हैं॥६॥

She who reads these five stanzas, In the morning, extolling the mother Lalitha, Who is easy to please, Would get luck, knowledge riches, endless fame By the grace of Devi Lalitha.|| 6 ||

 

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं ललितापञ्चकं सम्पूर्णम्।


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Shivangi

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