न्यासदशकम् श्रीवेङ्कटनाथकृतं | Nyasa Dasakam with Hindi Meaning
न्यासदशकम् श्रीवेङ्कटनाथकृतं
(Nyasa Dasakam with Hindi Meaning)
अहं मद्रक्षणभरो मद्रक्षणफलं तथा।
न मम श्रीपतेरेवेत्यात्मानं निक्षिपेद् बुधः॥१॥
‘मैं, मेरी रक्षाका भार और उसका फल मेरा नहीं श्रीविष्णुभगवान् का ही है’—ऐसा विचारकर विद्वान् पुरुष अपने को भगवान् पर छोड़ दे॥१॥
न्यस्याम्यकिञ्चनः श्रीमन्ननुकूलोऽन्यवर्जितः।
विश्वासप्रार्थनापूर्वमात्मरक्षाभरं त्वयि॥२॥
हे भगवन्! मैं अकिंचन अपनी रक्षाका भार अनन्य और अनुकूल (प्रणत) होकर विश्वास और प्रार्थनापूर्वक आपको सौंपता हूँ॥२॥
स्वामी स्वशेषं स्ववशं स्वभरत्वेन निर्भरम्।
स्वदत्तस्वधिया स्वार्थं स्वस्मिन्न्यस्यति मां स्वयम्॥३॥
मेरे स्वामी अपने शेष, वशीभूत और अपनी ही रक्षकता पर अवलम्बित हुए मुझको अपनी निजकी दी हुई बुद्धिसे स्वयं अपने लिये अपने में ही समर्पित करते हैं [अर्थात् परम पुरुषार्थको सिद्ध करनेके लिये स्वयं ही अपनी शरणमें ले लेते हैं ॥३॥
श्रीमन्नभीष्टवरद त्वामस्मि शरणं गतः।
एतद्देहावसाने मां त्वत्पादं प्रापय स्वयम्॥४॥
हे अभीष्टवरदायक स्वामिन् ! मैं आपकी शरण हूँ। इस देहका अन्त होनेपर आप मुझे स्वयं अपने चरणकमलोंतक पहुँचा दें॥ ४ ॥
त्वच्छेषत्वे स्थिरधियं त्वत्प्राप्त्येकप्रयोजनम्।
निषिद्धकाम्यरहितं कुरु मां नित्यकिङ्करम्॥
आपका शेष होने में स्थिरबुद्धिवाले, आपकी प्राप्तिका ही एकमात्र प्रयोजन रखनेवाले, निषिद्ध
और काम्य कर्मोंसे रहित मुझको आप अपना नित्य सेवक बनाइये॥५॥
देवीभूषणहेत्यादिजुष्टस्य भगवंस्तव।
नित्यं निरपराधेषु कैकर्येषु नियुक्ष्व माम्॥
देवी (श्रीलक्ष्मीजी), भूषण (कौस्तुभादि) और शस्त्रादि (गदा, शाादि) से युक्त अपनी निर्दोष सेवाओंमें, हे भगवन्! आप मुझे नित्य नियुक्त रखिये॥६॥
मां मदीयं च निखिलं चेतनाचेतनात्मकम्।
स्वकैङ्कोपकरणं वरद स्वीकुरु स्वयम्॥७॥
हे वरदायक प्रभो! मुझको और चेतनअचेतनरूप मेरी समस्त वस्तुओंको, अपनी सेवाकी सामग्रीके रूपमें स्वीकार कीजिये॥७॥
त्वमेव रक्षकोऽसि मे त्वमेव करुणाकरः।
न प्रवर्तय पापानि प्रवृत्तानि निवारय॥८॥
हे प्रभो! मेरे एकमात्र आप ही रक्षक हैं, आप ही मुझपर दया करनेवाले हैं; अतः पापोंको मेरी ओर प्रवृत्त न कीजिये और प्रवृत्त हुए पापोंका निवारण कीजिये॥८॥
अकृत्यानां च करणं कृत्यानां वर्जनं च मे।
क्षमस्व निखिलं देव प्रणतार्तिहर प्रभो॥९॥
हे देव! हे दीनदुःखहारी भगवन् ! मेरा न करनेयोग्य कार्योंका करना और करने योग्योंको न करना आप क्षमा करें॥९॥
श्रीमन्नियतपञ्चाङ्गं मद्रक्षणभरार्पणम्।
अचीकरत्स्वयं स्वस्मिन्नतोऽहमिह निर्भरः॥१०॥
श्रीमन् ! आपने स्वयं ही मेरी पाँचों इन्द्रियोंको नियन्त्रित करके मेरी रक्षाका भार अपने ऊपर ले लिया; अतः अब मैं निर्भर हो गया॥ १० ॥
इति श्रीवेङ्कटनाथकृतं न्यासदशकं सम्पूर्णम् ।