षट्पदी हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित | Shatpadi Stotram Lyrics in Sanskrit Hindi English
षट्पदी हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित
अविनयमपनय विष्णो दमय मनः शमय विषयमृगतृष्णाम्।
भूतदयां विस्तारय तारय संसारसागरतः॥१॥
avinayamapanaya viṣṇo damaya manaḥ śamaya viṣayamṛgatṛṣṇām।
bhūtadayāṃ vistāraya tāraya saṃsārasāgarataḥ॥1॥
हे विष्णुभगवान् ! मेरी उद्दण्डता दूर कीजिये, मेरे मन का दमन कीजिये और विषयों की मृगतृष्णा को शान्त कर दीजिये, प्राणियों के प्रति मेरा दयाभाव बढ़ाइये और इस संसार-समुद्र से मुझे पार लगाइये॥ १॥
Oh my lord Vishnu, please remove my pride,Make my entire mind filled with peace,Put an end to any attraction towards animal desires,Expand my mind with mercy to all beings,And help me cross, this ocean of daily life.॥1॥
दिव्यधुनीमकरन्दे परिमलपरिभोगसच्चिदानन्दे।
श्रीपतिपदारविन्दे भवभयखेदच्छिदे वन्दे॥२॥
divyadhunīmakarande parimalaparibhogasaccidānande।
śrīpatipadāravinde bhavabhayakhedacchide vande॥2॥
भगवान् लक्ष्मीपति के उन चरणकमलों की वन्दना करता हूँ, जिनका मकरन्द गंगा और सौरभ सच्चिदानन्द है तथा जो संसार के भय और खेद का छेदन करने वाले हैं॥२॥
I salute the lotus like feet of Vishnu,Which cuts off the fear and sorrow of the worldly life,Which is like a river of holy pollen grains,And which is with the divine scent of eternal happiness.॥2॥
सत्यपि भेदापगमे नाथ तवाहं न मामकीनस्त्वम्।
सामुद्रो हि तरङ्गः क्वचन समुद्रो न तारङ्गः॥३॥
satyapi bhedāpagame nātha tavāhaṃ na māmakīnastvam।
sāmudro hi taraṅgaḥ kvacana samudro na tāraṅgaḥ॥3॥
हे नाथ! [मुझमें और आपमें] भेद न होने पर भी, मैं ही आपका हूँ, आप मेरे नहीं; क्योंकि तरंग ही समुद्र की होती है, तरंग का समुद्र कहीं नहीं होता। ३॥
Even at the time of true realization, when I see no differences,I am but a part of you, and you are never my part, For a tide is a part of the sea and sea can never be a part of the tide.
Shatpadi Lyrics in Sanskrit with Hindi English Meaning
उद्धृतनग नगभिदनुज दनुजकुलामित्र मित्रशशिदृष्टे।
दृष्टे भवति प्रभवति न भवति किं भवतिरस्कारः॥४॥
uddhṛtanaga nagabhidanuja danujakulāmitra mitraśaśidṛṣṭe।
dṛṣṭe bhavati prabhavati na bhavati kiṃ bhavatiraskāraḥ॥4॥
हे गोवर्धनधारिन्! हे इन्द्र के अनुज (वामन) ! हे राक्षसकुल के शत्रु ! हे सूर्य-चन्द्ररूपी नेत्रवाले! आप जैसे प्रभु के दर्शन होने पर क्या संसार के प्रति उपेक्षा नहीं हो जाती? [अपितु अवश्य ही हो जाती है। ॥ ४॥
He who lifted the mountain,Who is the brother of the enemy of the mountain,Who is the enemy of the Asura clan,
And who sees with the eyes of moon and sun,Once you are seen, the sorrow of the world end,And is there anything that will remain to happen?॥4॥
मत्स्यादिभिरवतारैरवतारवतावता सदा वसुधाम्।
परमेश्वर परिपाल्यो भवता भवतापभीतोऽहम्॥
matsyādibhiravatārairavatāravatāvatā sadā vasudhām।
parameśvara paripālyo bhavatā bhavatāpabhīto’ham॥5॥
हे परमेश्वर ! मत्स्यादि अवतारों से अवतरित होकर पृथ्वी की सर्वदा रक्षा करने वाले आपके द्वारा संसार के त्रिविध तापों से भयभीत हुआ मैं रक्षा करने के योग्य हूँ॥५॥
You who took incarnations starting from that of fish,And well looked after, forever, this entire earth,Oh, God who is the greatest one,Please protect me, who am afraid of the life of the world.॥5॥
दामोदर गुणमन्दिर सुन्दरवदनारविन्द गोविन्द।
भवजलधिमथनमन्दर परमं दरमपनय त्वं मे॥
dāmodara guṇamandira sundaravadanāravinda govinda।
bhavajaladhimathanamandara paramaṃ daramapanaya tvaṃ me॥6॥
हे गुणमन्दिर दामोदर! हे मनोहर मुखारविन्द गोविन्द! हे संसारसमुद्र का मन्थन करने के लिये मन्दराचलरूप! मेरे महान् भय को आप दूर कीजिये॥ ६॥
He who was tied by a rope in your belly,Who is the storehouse of good qualities,Who has a lotus like face,Who is the care taker of all beings,And who is the greatest method to churn the ocean of life,Please remove the fear of worldly life from me.॥6॥
नारायण करुणामय शरणं करवाणि तावको चरणौ।
इति षट्पदी मदीये वदनसरोजे सदा वसतु॥७॥
nārāyaṇa karuṇāmaya śaraṇaṃ karavāṇi tāvako caraṇau।
iti ṣaṭpadī madīye vadanasaroje sadā vasatu॥7॥
हे करुणामय नारायण! मैं सब प्रकार से आपके चरणों की शरण लूँ। यह पूर्वोक्त षट्पदी (छः पदों की स्तुतिरूपिणी भ्रमरी) सर्वदा मेरे मुख-कमल में निवास करे॥७॥
Oh Narayana, Oh personification of mercy,Let my hands salute thine feet,And let these six verses live always,In my lotus like face.
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं षट्पदीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।