शिवाष्टकम् स्तोत्रम् संस्कृत हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित | Shivashtakam Stotram Lyrics in Sanskrit Hindi English
शिवाष्टकम् स्तोत्रम् संस्कृत हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित
तस्मै नमः परमकारणकारणाय
दीप्तोज्ज्वलज्ज्वलितपिङ्गललोचनाय।
नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय
ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नमः शिवाय॥१॥
tasmai namaḥ paramakāraṇakāraṇāya
dīptojjvalajjvalitapiṅgalalocanāya।
nāgendrahārakṛtakuṇḍalabhūṣaṇāya
brahmendraviṣṇuvaradāya namaḥ śivāya॥1॥
जो कारण के भी परम कारण हैं, (अग्निशिखा के समान) अतिदेदीप्यमान उज्ज्वल और पिंगल नेत्रोंवाले हैं, सर्पराजों के हार-कुण्डलादि से भूषित हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्रादि को भी वर देने वाले हैं, उन श्रीशंकर को नमस्कार करता हूँ॥१॥
श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय
शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय ।
कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय
लोकत्रयार्तिहरणाय नमः शिवाय॥२॥
śrīmatprasannaśaśipannagabhūṣaṇāya
śailendrajāvadanacumbitalocanāya ।
kailāsamandaramahendraniketanāya
lokatrayārtiharaṇāya namaḥ śivāya॥2॥
शोभायमान एवं निर्मल चन्द्रकला तथा सर्प ही जिनके भूषण हैं, गिरिराजकुमारी अपने मुख से जिनके लोचनों का चुम्बन करती हैं, कैलास और महेन्द्रगिरि जिनके निवासस्थान हैं तथा जो त्रिलोकी के दुःख को दूर करने वाले हैं, उन श्रीशंकर को नमस्कार करता हूँ॥२॥
पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय
कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय।
भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय
नीलाब्जकण्ठसदृशाय नमः शिवाय॥३॥
padmāvadātamaṇikuṇḍalagovṛṣāya
kṛṣṇāgarupracuracandanacarcitāya।
bhasmānuṣaktavikacotpalamallikāya
nīlābjakaṇṭhasadṛśāya namaḥ śivāya॥3॥
जो स्वच्छ पद्मरागमणि के कुण्डलों से किरणों की वर्षा करने वाले, अगरु और बहुत-से चन्दन से चर्चित तथा भस्म, प्रफुल्लित कमल और जूही से सुशोभित हैं, ऐसे नीलकमलसदृश कण्ठवाले शिव को नमस्कार है॥३॥
लम्बत्सपिङ्गलजटामुकुटोत्कटाय
दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय।
व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय
त्रैलोक्यनाथनमिताय नमः शिवाय॥४॥
lambatsapiṅgalajaṭāmukuṭotkaṭāya
daṃṣṭrākarālavikaṭotkaṭabhairavāya।
vyāghrājināmbaradharāya manoharāya
trailokyanāthanamitāya namaḥ śivāya॥4॥
लटकती हुई पिंगलवर्ण जटाओं के सहित मुकुट धारण करने से जो उत्कट जान पड़ते हैं, तीक्ष्ण दाढ़ों के कारण जो अति विकट और भयानक प्रतीत होते हैं, व्याघ्रचर्म धारण किये हुए हैं, अति मनोहर हैं तथा तीनों लोकों के अधीश्वर भी जिनके चरणों में झुकते हैं, उन श्रीशंकर को प्रणाम है॥ ४॥
Shivashtakam Stotram Lyrics in Sanskrit with Hindi English Meaning
दक्षप्रजापतिमहामखनाशनाय क्षि
प्रं महात्रिपुरदानवघातनाय।
ब्रह्मोर्जितोवंगकरोटिनिकृन्तनाय
योगाय योगनमिताय नमः शिवाय॥५॥
dakṣaprajāpatimahāmakhanāśanāya kṣi
praṃ mahātripuradānavaghātanāya।
brahmorjitovaṃgakaroṭinikṛntanāya
yogāya yoganamitāya namaḥ śivāya॥5॥
दक्षप्रजापति के महायज्ञ को ध्वंस करने वाले, महान् त्रिपुरासुर को शीघ्र मार डालने वाले, दर्पयुक्त ब्रह्मा के ऊर्ध्वमुख पंचम सिर का छेदन करने वाले, योगस्वरूप, योग से नमस्कृत शिव को मैं नमस्कार करता हूँ॥५॥
संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय रक्षः
पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय।
सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय
शार्दूलचर्मवसनाय नमः शिवाय॥६॥
saṃsārasṛṣṭighaṭanāparivartanāya rakṣaḥ
piśācagaṇasiddhasamākulāya।
siddhoragagrahagaṇendraniṣevitāya
śārdūlacarmavasanāya namaḥ śivāya॥6॥
जो कल्प-कल्प में संसाररचना का परिवर्तन करने वाले हैं; राक्षस, पिशाच और सिद्धगणों से घिरे रहते हैं; सिद्ध, सर्प, ग्रहगण तथा इन्द्रादि से सेवित हैं तथा जो व्याघ्रचर्म धारण किये हुए हैं, उन श्रीशंकर को नमस्कार करता हूँ॥६॥
भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय
सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय।
गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय
गोक्षीरधारधवलाय नमः शिवाय॥७॥
bhasmāṅgarāgakṛtarūpamanoharāya
saumyāvadātavanamāśritamāśritāya।
gaurīkaṭākṣanayanārdhanirīkṣaṇāya
gokṣīradhāradhavalāya namaḥ śivāya॥7॥
भस्मरूपी अंगराग से जिन्होंने अपने रूप को अत्यन्त मनोहर बनाया है, जो अति शान्त और सुन्दर वन का आश्रय करने वालों के आश्रित हैं, श्रीपार्वतीजी के कटाक्ष की ओर जो बाँकी चितवन से निहार रहे हैं और गोदुग्ध की धारा के समान जिनका श्वेत वर्ण है, उन श्रीशंकर को मैं नमस्कार करता हूँ॥७॥
आदित्यसोमवरुणानिलसेविताय
यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय।
ऋक्सामवेदमुनिभिः स्तुतिसंयुताय
गोपाय गोपनमिताय नमः शिवाय॥८॥
ādityasomavaruṇānilasevitāya
yajñāgnihotravaradhūmaniketanāya।
ṛksāmavedamunibhiḥ stutisaṃyutāya
gopāya gopanamitāya namaḥ śivāya॥8॥
सूर्य, चन्द्र, वरुण और पवन से जो सेवित हैं, यज्ञ और अग्निहोत्र के धूम में जिनका निवास है, ऋक्सामादि वेद और मुनिजन जिनकी स्तुति करते हैं, उन नन्दीश्वरपूजित गौओं का पालन करने वाले महादेवजी को नमस्कार करता हूँ॥८॥
शिवाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥९॥
śivāṣṭakamidaṃ puṇyaṃ yaḥ paṭhecchivasannidhau।
śivalokamavāpnoti śivena saha modate॥9॥
जो इस पवित्र शिवाष्टक को श्रीमहादेवजी के समीप पढ़ता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है और शंकरजी के साथ आनन्द प्राप्त करता है॥९॥
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं शिवाष्टकं सम्पूर्णम्।