श्री गणपति मङ्गलम् स जयति सिन्धुरवदनो देवो हिंदी अर्थ सहित | Shri Ganpati Mangal Stotra
॥ ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः॥
॥ श्री गणपति मङ्गलम् ॥
स जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपङ्कजस्मरणम्।
वासरमणिरिव तमसां राशीन्नाशयति विघ्नानाम्॥१॥
उन गजवदन देवदेवकी जय हो, जिनके चरणकमलका स्मरण सम्पूर्ण विघ्नसमूहको इस प्रकार नष्ट कर देता है जैसे सूर्य अन्धकारराशिको॥१॥
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः॥२॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि॥३॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते॥४॥
सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन—इन बारह नामोंका पाठ या श्रवण विद्यारम्भ, विवाह, गृहप्रवेश, निर्गमन (घरसे बाहर जाने), संग्राम अथवा संकटके समय करता है, उसे किसी प्रकार का विघ्न नहीं होता॥२-४॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये॥५॥
जो श्वेत वस्त्र धारण किये हैं, चन्द्रमाके समान जिनका वर्ण है तथा जो प्रसन्नवदन हैं, उन देवदेव चतुर्भुज भगवान् विष्णुका सब विघ्नोंकी निवृत्तिके लिये ध्यान करना चाहिये॥५॥
व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम्।
पराशरात्मजं वन्दे शुकतातं तपोनिधिम्॥६॥
जो वसिष्ठजी के नाती (प्रपौत्र), शक्ति के पौत्र, पराशरजी के पुत्र तथा शुकदेवजी के पिता हैं, उन निष्पाप, तपोनिधि व्यासजी की मैं वन्दना करता हूँ॥ ६॥
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः॥७॥
विष्णुरूप व्यास अथवा व्यासरूप श्रीविष्णु को मैं नमस्कार करता हूँ। वसिष्ठवंशज ब्रह्मनिधि श्रीव्यासजी को बारम्बार नमस्कार है ॥ ७॥
अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरिः।
अभाललोचनः शम्भुर्भगवान् बादरायणः॥८॥
भगवान् वेदव्यास जी बिना चार मुखके ब्रह्मा हैं, दो भुजावाले दूसरे विष्णु हैं और ललाटलोचन (तीसरे नेत्र) से रहित साक्षात् महादेवजी हैं॥ ८॥
इति मङ्गलं सम्पूर्णम्।