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श्रीमद् भागवत महापुराण नवम स्कन्ध

श्रीमद् भागवत महापुराण स्कन्ध 9 अध्याय 12

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श्रीमद्भागवतपुराणम्
स्कन्धः ९/अध्यायः १२
इक्ष्वाकूणां कुशादिसुमित्रान्तानां वर्णनम् –

श्रीशुक उवाच ।
कुशस्य चातिथिस्तस्मात् निषधस्तत्सुतो नभः ।
पुण्डरीकोऽथ तत्पुत्रः क्षेमधन्वाभवत्ततः ॥ १ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैं-परीक्षित्! कुशका पुत्र हुआ अतिथि, उसका निषध, निषधका नभ, नभका पुण्डरीक और पुण्डरीकका क्षेमधन्वा ।।१।।

देवानीकस्ततोऽनीहः पारियात्रोऽथ तत्सुतः ।
ततो बलस्थलः तस्मात् वज्रनाभोऽर्कसंभवः ॥ २ ॥

क्षेमधन्वाका देवानीक, देवानीकका अनीह, अनीहका पारियात्र, पारियात्रका बलस्थल और बलस्थलका पुत्र हुआ वज्रनाभ। यह सूर्यका अंश था ।।२।।

खसगणः तत्सुतः तस्माद् विधृतिश्चाभवत्सुतः ।
ततो हिरण्यनाभोऽभूद् योगाचार्यस्तु जैमिनेः ॥ ३ ॥

वज्रनाभसे खगण, खगणसे विधृति और विधृतिसे हिरण्यनाभकी उत्पत्ति हुई। वह जैमिनिका शिष्य और योगाचार्य था ||३||

शिष्यः कौशल्य आध्यात्मं याज्ञवल्क्योऽध्यगाद् यतः ।
योगं महोदयं ऋषिः हृदयग्रन्थि भेदकम् ॥ ४ ॥

कोसलदेशवासी याज्ञवल्क्य ऋषिने उसकी शिष्यता स्वीकार करके उससे अध्यात्मयोगकी शिक्षा ग्रहण की थी। वह योग हृदयकी गाँठ काट देनेवाला तथा परम सिद्धि देनेवाला है ।।४।।

पुष्यो हिरण्यनाभस्य ध्रुवसन्धिः ततोऽभवत् ।
सुदर्शनोऽथाग्निवर्णः शीघ्रस्तस्य मरुः सुतः ॥ ५ ॥

हिरण्यनाभका पुष्य, पुष्यका ध्रुवसन्धि, ध्रुवसन्धिका सुदर्शन, सुदर्शनका अग्निवर्ण, अग्निवर्णका शीघ्र और शीघ्रका पुत्र हुआ मरु ||५||

सोऽसावास्ते योगसिद्धः कलापग्राममास्थितः ।
कलेरन्ते सूर्यवंशं नष्टं भावयिता पुनः ॥ ६ ॥

मरुने योगसाधनासे सिद्धि प्राप्त कर लीऔर वह इस समय भी कलाप नामक ग्राममें रहता है। कलियुगके अन्तमें सूर्यवंशके नष्ट हो जानेपर वह उसे फिरसे चलायेगा ।।६।।

तस्मात् प्रसुश्रुतः तस्य सन्धिः तस्याप्यमर्षणः ।
महस्वांन् तत्सुतः तस्माद् विश्वबाहुरजायत ॥ ७ ॥

मरुसे प्रसुश्रुत, उससे सन्धि और सन्धिसे अमर्षणका जन्म हुआ। अमर्षणका महस्वान्
और महस्वान्का विश्वसाह ||७||

ततः प्रसेनजित् तस्मात् तक्षको भविता पुनः ।
ततो बृहद्‍बलो यस्तु पित्रा ते समरे हतः ॥ ८ ॥

विश्वसाहका प्रसेनजित्, प्रसेनजित्का तक्षक और तक्षकका पुत्र बृहद्बल हुआ। परीक्षित्! इसी बृहद्बलको तुम्हारे पिता अभिमन्युने युद्ध में मार डाला था ।।८।।

एते हि ईक्ष्वाकुभूपाला अतीताः श्रृण्वनागतान् ।
बृहद्‍बलस्य भविता पुत्रो नाम्ना बृहद्रणः ॥ ९ ॥

परीक्षित्! इक्ष्वाकुवंशके इतने नरपति हो चुके हैं। अब आनेवालोंके विषयमें सुनो। बृहद्बलका पुत्र होगा बृहद्रण ||९||

ऊरुक्रियः सुतस्तस्य वत्सवृद्धो भविष्यति ।
प्रतिव्योमस्ततो भानुः दिवाको वाहिनीपतिः ॥ १० ॥

बृहद्रणका उरुक्रिय, उसका वत्सवृद्ध, वत्सवृद्धका प्रतिव्योम, प्रतिव्योमका भानु और भानुका पुत्र होगा सेनापति दिवाक ||१०||

सहदेवस्ततो वीरो बृहदश्वोऽथ भानुमान् ।
प्रतीकाश्वो भानुमतः सुप्रतीकोऽथ तत्सुतः ॥ ११ ॥

दिवाकका वीर सहदेव, सहदेवका बृहदश्व, बृहदश्वका भानुमान्, भानुमान्का प्रतीकाश्व और प्रतीकाश्वका पुत्र होगा सुप्रतीक ।।११।।

भविता मरुदेवोऽथ सुनक्षत्रोऽथ पुष्करः ।
तस्यान्तरिक्षः तत्पुत्रः सुतपास्तद् अमित्रजित् ॥ १२ ॥

सुप्रतीकका मरुदेव, मरुदेवका सुनक्षत्र, सुनक्षत्रका पुष्कर, पुष्करका अन्तरिक्ष, अन्तरिक्षका सुतपा और उसका पुत्र होगा अमित्रजित् ।।१२।।

बृहद्राजस्तु तस्यापि बर्हिस्तस्मात् कृतञ्जयः ।
रणञ्जयस्तस्य सुतः सञ्जयो भविता ततः ॥ १३ ॥

अमित्रजित्से बृहद्राज, बृहद्राजसे बर्हि, बर्हिसे कृतंजय, कृतंजयसे रणंजय और उससे संजय होगा ।।१३।।

तस्माच्छाक्योऽथ शुद्धोदो लांगलस्तत्सुतः स्मृतः ।
ततः प्रसेनजित् तस्मात् क्षुद्रको भविता ततः ॥ १४ ॥

संजयका शाक्य, उसका शुद्धोद और शुद्धोदका लांगल, लांगलका प्रसेनजित् और प्रसेनजितका पुत्र क्षुद्रक होगा ।।१४।।

रणको भविता तस्मात् सुरथस्तनयस्ततः ।
सुमित्रो नाम निष्ठान्त एते बार्हद्‍बलान्वयाः ॥ १५ ॥

क्षुद्रकसे रणक, रणकसे सुरथ और सुरथसे इस वंशके अन्तिम राजा सुमित्रका जन्म होगा। ये सब बृहद्बलके वंशधर होंगे ।।१५।।

इक्ष्वाकूणां अयं वंशः सुमित्रान्तो भविष्यति ।
यतस्तं प्राप्य राजानं संस्थां प्राप्स्यति वै कलौ ॥ १६ ॥

इक्ष्वाकुका यहवंश सुमित्रतक ही रहेगा। क्योंकि सुमित्रके राजा होनेपर कलियुगमें यह वंश समाप्त हो जायगा ||१६||

इति श्रीमद्‍भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायां नवमस्कन्धे द्वाशोऽध्यायः ॥ १२ ॥
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥


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Shweta Srinet

गरिमा जी संस्कृत भाषा में परास्नातक एवं राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण हैं। यह RamCharit.in हेतु 2018 से सतत पूर्णकालिक सदस्य के रूप में कार्य कर रही हैं। धार्मिक ग्रंथों को उनके मूल आध्यात्मिक रूप में सरलता से उपलब्ध कराने का कार्य इसके द्वारा ही निष्पादित होता है।

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