श्रीमद् भागवत महापुराण तृतीय स्कन्ध हिंदी अर्थ सहित | Srimad Bhagwat Mahapuran 3rd Skandh with Hindi Meaning
श्रीमद् भागवत महापुराण तृतीय स्कन्ध हिंदी अर्थ सहित
Srimad Bhagwat Mahapuran 3rd Skandh with Hindi Meaning
॥ ॐ तत्सत्॥
॥ श्रीगणेशायः नमः॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥
अध्याय 1: उद्धव और विदुरकी भेंट
अध्याय 2: उद्धवजी द्वारा भगवान की बाललीलाओं का वर्णन
अध्याय 3: भगवान् के अन्य लीलाचरित्रों का वर्णन
अध्याय 4: उद्धवजी से विदा होकर विदुरजी का मैत्रेय ऋषि के पास जाना
अध्याय 5: विदुरजी का प्रश्न और मैत्रेयजी का सृष्टिक्रम वर्णन
अध्याय 6: विराट् शरीर की उत्पत्ति
अध्याय 7: विदुरजी के प्रश्न
अध्याय 8: ब्रह्माजीकी उत्पत्ति
अध्याय 9: ब्रह्माजीद्वारा भगवान की स्तुति
अध्याय 10: दस प्रकार की सृष्टि का वर्णन
अध्याय 11: मन्वन्तरादि कालविभाग का वर्णन
अध्याय 12: सृष्टि का विस्तार
अध्याय 13: वाराह-अवतार की कथा
अध्याय 14: दिति का गर्भधारण
अध्याय 15: जय-विजयको सनकादि का शाप
अध्याय 16: जय-विजयका वैकुण्ठसे पतन
अध्याय 17: हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म तथा हिरण्याक्षकी दिग्विजय
अध्याय 18: हिरण्याक्ष के साथ वराह भगवान् का युद्ध
अध्याय 19: हिरण्याक्ष-वध
अध्याय 20: ब्रह्माजीकी रची हुई अनेक प्रकारकी सृष्टिका वर्णन
अध्याय 21: कर्दमजी की तपस्या और भगवान् का वरदान
अध्याय 22: देवहूति के साथ कर्दम प्रजापति का विवाह
अध्याय 23: कर्दम और देवहूति का विहार
अध्याय 24: श्री कपिलदेव जी का जन्म
अध्याय 25: देवहूति का प्रश्न तथा भगवान् कपिल द्वारा भक्तियोग की महिमा का वर्णन
अध्याय 26: महदादि भिन्न-भिन्न तत्त्वों की उत्पत्ति का वर्णन
अध्याय 27: प्रकृति-पुरुष के विवेक से मोक्ष-प्राप्ति का वर्णन
अध्याय 28: अष्टांगयोग की विधि
अध्याय 29: भक्ति का मर्म और काल की महिमा
अध्याय 30: देह-गेह में आसक्त पुरुषों की अधोगति का वर्णन
अध्याय 31: मनुष्य योनि को प्राप्त हुए जीव की गति का वर्णन
अध्याय 32: अर्चिरादि मार्ग से जाने वालों की गति का और भक्तियोग की उत्कृष्टता
अध्याय 33: देवहूति को तत्त्वज्ञान एवं मोक्षपद की प्राप्ति
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