वाल्मीकि रामायण अरण्यकाण्ड श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana AranyaKanda with Hindi Meaning
वाल्मीकि रामायण अरण्यकाण्ड श्लोक हिंदी अर्थ सहित
Valmiki Ramayana AranyaKanda with Hindi Meaning
काण्ड परिचय:
वने राजकुले वह्निजलपीडायुतो नर:।
पठेदारण्यकं काण्डं श्रृणुयाद् वा स मंगली॥
अर्थात (‘बृहद्धर्मपुराण’ के अनुसार) इस काण्ड का पाठ उसे करना चाहिए जो वन, राजकुल, अग्नि तथा जलपीड़ा से युक्त हो। इसके पाठ से अवश्य मंगल प्राप्ति होती है। वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड में 75 सर्ग हैं, जिनमें गणना से 2,440 श्लोक प्राप्त होते हैं।
अरण्यकाण्ड में राम, सीता तथा लक्ष्मण दण्डकारण्य में प्रवेश करते हैं। जंगल में तपस्वी जनों, मुनियों तथा ऋषियों के आश्रम में विचरण करते हुए राम उनकी करुण-गाथा सुनते हैं। मुनियों आदि को राक्षसों का भी भीषण भय रहता है। इसके पश्चात् राम पञ्चवटी में आकर आश्रम में रहते हैं, वहीं शूर्पणखा से मिलन होता है। शूर्पणखा के प्रसंग में उसका नाक-कान विहीन करना तथा उसके भाई खर दूषण तथा त्रिशिरा से युद्ध और उनका संहार वर्णित है।
इसके बाद शूर्पणखा लंका जाकर रावण से अपना वृत्तांत कहती है और अप्रतिम सुन्दरी सीता के सौन्दर्य का वर्णन करके उन्हें अपहरण करने की प्रेरणा देती है। रावण-मारीच संवाद, मारीच का स्वर्णमय, कपटमृग बनना, मारीच वध, सीता का रावण द्वारा अपहरण, सीता को छुड़ाने के लिए जटायु का युद्ध, गृध्रराज जटायु का रावण के द्वारा घायल किया जाना, अशोकवाटिका में सीता को रखना, श्रीराम का विलाप, सीता का अन्वेषण, राम-जटायु-संवाद तथा जटायु को मोक्ष प्राप्ति, कबन्ध की आत्मकथा, उसका वध तथा दिव्यरूप प्राप्ति, शबरी के आश्रम में राम का गमन, ऋष्यमूक पर्वत तथा पम्पा सरोवर के तट पर राम का गमन आदि प्रसंग अरण्यकाण्ड में उल्लिखित हैं।
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सर्ग एवं विषय:
सर्ग 1: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का तापसों के आश्रम मण्डल में सत्कार
सर्ग 2: वन के भीतर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पर विराध का आक्रमण
सर्ग 4: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा विराध का वध
सर्ग 8: प्रातःकाल सुतीक्ष्ण से विदा ले श्रीराम,लक्ष्मण, सीता का वहाँ से प्रस्थान
सर्ग 9: सीता का श्रीराम से निरपराध प्राणियों को न मारने और अहिंसा-धर्म का पालन करने के लिये अनुरोध
सर्ग 14: पञ्चवटी के मार्ग में जटायु का मिलना और श्रीराम को अपना विस्तृत परिचय देना
सर्ग 20: श्रीराम द्वारा खर के भेजे हुए चौदह राक्षसों का वध
सर्ग 22: चौदह हजार राक्षसों की सेना के साथ खर-दूषण का जनस्थान से पञ्चवटी की ओर प्रस्थान
सर्ग 25: राक्षसों का श्रीराम पर आक्रमण और श्रीरामचन्द्रजी के द्वारा राक्षसों का संहार
सर्ग 26: श्रीराम के द्वारा दूषणसहित चौदह सहस्र राक्षसों का वध
सर्ग 27: त्रिशिरा का वध
सर्ग 28: खर के साथ श्रीराम का घोर युद्ध
सर्ग 31: रावण का अकम्पन की सलाह से सीता का अपहरण करने के लिये जाना और मारीच के कहने से लङ्का को लौट आना
सर्ग 32: शूर्पणखा का लंका में रावण के पास जाना
सर्ग 33: शूर्पणखा का रावण को फटकारना
सर्ग 35: रावण का समुद्रतटवर्ती प्रान्त की शोभा देखते हुए पुनः मारीच के पास जाना
सर्ग 36: रावण का मारीच से श्रीराम के अपराध बताकर उनकी पत्नी सीता के अपहरण में सहायता के लिये कहना
सर्ग 37: मारीच का रावण को श्रीरामचन्द्रजी के गुण और प्रभाव बताकर सीताहरण के उद्योग से रोकना
सर्ग 38: श्रीराम की शक्ति के विषय में अपना अनुभव बताकर मारीच का रावण को उनका अपराध करने से मना करना
सर्ग 39: मारीच का रावण को समझाना
सर्ग 40: रावण का मारीच को फटकारना और सीताहरण के कार्य में सहायता करने की आज्ञा देना
सर्ग 41: मारीच का रावण को विनाश का भय दिखाकर पुनः समझाना
सर्ग 42: मारीच का सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीराम के आश्रम पर जाना और सीता का उसे देखना
सर्ग 45: सीता के मार्मिक वचनों से प्रेरित होकर लक्ष्मण का श्रीराम के पास जाना
सर्ग 46: रावण का साधुवेष में सीता के पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीता का आतिथ्य के लिये उसे आमन्त्रित करना
सर्ग 48: रावण के द्वारा अपने पराक्रम का वर्णन और सीता द्वारा उसको कड़ी फटकार
सर्ग 49: रावण द्वारा सीता का अपहरण, सीता का विलाप और उनके द्वारा जटायु का दर्शन
सर्ग 51: जटायु तथा रावण का घोर युद्ध और रावण के द्वारा जटायु का वध
सर्ग 52: रावण द्वारा सीता का अपहरण
सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना
सर्ग 54: सीता का पाँच वानरों के बीच अपने भूषण और वस्त्र को गिराना, रावण का सीता को अन्तःपुर में रखना
सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना
प्रक्षिप्त सर्ग: ब्रह्माजी की आज्ञा से देवराज इन्द्र का निद्रासहित लङ्का में जाकर सीता को दिव्य खीर अर्पित करना और उनसे विदा लेकर लौटना
सर्ग 59: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत
सर्ग 61: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज और उनके न मिलने से श्रीराम की व्याकुलता
सर्ग 62: श्रीराम का विलाप
सर्ग 63: श्रीराम का विलाप
सर्ग 65: लक्ष्मण का श्रीराम को समझा-बुझाकर शान्त करना
सर्ग 66: लक्ष्मण का श्रीराम को समझाना
सर्ग 67: श्रीराम और लक्ष्मण की पक्षिराज जटायु से भेंट तथा श्रीराम का उन्हें गले से लगाकर रोना
सर्ग 68: जटायु का प्राण-त्याग और श्रीराम द्वारा उनका दाह-संस्कार
सर्ग 69: लक्ष्मण का अयोमुखी को दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मण का कबन्ध के बाहुबन्ध में पड़कर चिन्तित होना
सर्ग 75: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत तथा उन दोनों भाइयों का पम्पासरोवर के तट पर जाना
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