RamCharitManas (RamCharit.in)

इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड हिंदी अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग 41 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Ayodhyakanda Chapter 41

Spread the Glory of Sri SitaRam!

॥ श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः॥
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण
अयोध्याकाण्डम्
एकचत्वारिंशः सर्गः (सर्ग 41)

श्रीराम के वनगमन से रनवास की स्त्रियों का विलाप तथा नगरनिवासियों की शोकाकुल अवस्था

 

तस्मिंस्तु पुरुषव्याघ्र निष्क्रामति कृताञ्जलौ।
आर्तशब्दो हि संजज्ञे स्त्रीणामन्तःपुरे महान्॥१॥

पुरुषसिंह श्रीराम ने माताओं सहित पिता के लिये दूर से ही हाथ जोड़ रखे थे, उसी अवस्था में जब वे रथ द्वारा नगर से बाहर निकलने लगे, उस समय रनवास की रानियों में बड़ा हाहाकार मच गया॥१॥

अनाथस्य जनस्यास्य दुर्बलस्य तपस्विनः।
यो गतिः शरणं चासीत् स नाथः क्व नु गच्छति॥२॥

वे रोती हुई कहने लगीं—’हाय! जो हम अनाथ, दुर्बल और शोचनीय जनों की गति (सब सुखों की प्राप्ति कराने वाले) और शरण (समस्त आपत्तियों से रक्षा करने वाले) थे, वे हमारे नाथ (मनोरथ पूर्ण करने वाले) श्रीराम कहाँ चले जा रहे हैं? ॥ २॥

न क्रुध्यत्यभिशस्तोऽपि क्रोधनीयानि वर्जयन्।
क्रुद्वान् प्रसादयन् सर्वान् समदुःखः क्व गच्छति॥३॥

‘जो किसी के द्वारा झूठा कलंक लगाये जाने पर भी क्रोध नहीं करते थे, क्रोध दिलाने वाली बातें नहीं कहते थे और रूठे हुए सभी लोगों को मनाकर प्रसन्न कर लेते थे, वे दूसरों के दुःख में समवेदना प्रकट करने वाले राम कहाँ जा रहे हैं? ॥ ३॥

कौसल्यायां महातेजा यथा मातरि वर्तते।
तथा यो वर्ततेऽस्मासु महात्मा क्व नु गच्छति॥ ४॥

‘जो महातेजस्वी महात्मा श्रीराम अपनी माता कौसल्याके साथ जैसा बर्ताव करते थे, वैसा ही बर्ताव हमारे साथ भी करते थे, वे कहाँ चले जा रहे हैं? ॥ ४॥

कैकेय्या क्लिश्यमानेन राज्ञा संचोदितो वनम्।
परित्राता जनस्यास्य जगतः क्व नु गच्छति॥५॥

‘कैकेयी के द्वारा क्लेश में डाले गये महाराज के वन जाने के लिये कहने पर हमलोगों की अथवा समस्त जगत् की रक्षा करने वाले श्रीरघुवीर कहाँ चले जा रहे हैं? ॥ ५॥

अहो निश्चेतनो राजा जीवलोकस्य संक्षयम्।
धर्म्यं सत्यव्रतं रामं वनवासे प्रवत्स्यति॥६॥

‘अहो! ये राजा बड़े बुद्धिहीन हैं, जो कि जीवजगत् के आश्रयभूत, धर्मपरायण, सत्यव्रती श्रीराम को वनवास के लिये देश निकाला दे रहे हैं ॥६॥

इति सर्वा महिष्यस्ता विवत्सा इव धेनवः।
रुरुदुश्चैव दुःखार्ताः सस्वरं च विचुक्रुशुः॥७॥

इस प्रकार वे सब-की-सब रानियाँ बछड़ों से बिछुड़ी हुई गौओं की तरह दुःख से आर्त होकर रोने और उच्चस्वर से क्रन्दन करने लगीं॥७॥

स तमन्तःपुरे घोरमार्तशब्दं महीपतिः।
पुत्रशोकाभिसंतप्तः श्रुत्वा चासीत् सुदुःखितः॥

अन्तःपुर में वह घोर आर्तनाद सुनकर पुत्रशोक से संतप्त हुए महाराज दशरथ बहुत दुःखी हो गये॥८॥

नाग्निहोत्राण्यहूयन्त नापचन् गृहमेधिनः।
अकुर्वन् न प्रजाः कार्यं सूर्यश्चान्तरधीयत॥९॥
व्यसृजन् कवलान् नागा गावो वत्सान् न पाययन्।
पुत्रां प्रथमजं लब्ध्वा जननी नाभ्यनन्दत ॥१०॥

उस दिन अग्निहोत्र बंद हो गया, गृहस्थों के घर भोजन नहीं बना, प्रजाओं ने कोई काम नहीं किया, सूर्यदेव अस्ताचल को चले गये, हाथियों ने मुँह में लिया हुआ चारा छोड़ दिया, गौओं ने बछड़ों को दूध नहीं पिलाया और पहले-पहल पुत्र को जन्म देकर भी कोई माता प्रसन्न नहीं हुई॥९-१० ॥

त्रिशङ्कर्लोहिताङ्गश्च बृहस्पतिबुधावपि।
दारुणाः सोममभ्येत्य ग्रहाः सर्वे व्यवस्थिताः॥ ११॥

त्रिशंकु, मङ्गल, गुरु, बुध तथा अन्य समस्त ग्रह शुक्र, शनि आदि रात में वक्रगति से चन्द्रमा के पास पहुँचकर दारुण (क्रूरकान्तियुक्त) होकर स्थित हो गये॥

नक्षत्राणि गता षि ग्रहाश्च गततेजसः।
विशाखाश्च सधमाश्च नभसि प्रचकाशिरे॥ १२॥

नक्षत्रों की कान्ति फीकी पड़ गयी और ग्रह निस्तेज हो गये। वे सब-के-सब आकाश में विपरीत मार्गपर स्थित हो धूमाच्छन्न प्रतीत हो रहे थे॥ १२ ॥

कालिकानिलवेगेन महोदधिरिवोत्थितः।
रामे वनं प्रव्रजिते नगरं प्रचचाल तत्॥१३॥

आकाश में छायी हुई मेघमाला वायु के वेग से उमड़े हुए समुद्र के समान प्रतीत होती थी। श्रीराम के वन को जाते समय वह सारा नगर जोर-जोर से हिलने लगा (वहाँ भूकम्प आ गया) ॥ १३॥

दिशः पर्याकुलाः सर्वास्तिमिरेणेव संवृताः।
न ग्रहो नापि नक्षत्रं प्रचकाशे न किंचन॥१४॥

समस्त दिशाएँ व्याकुल हो उठीं, उनमें अन्धकार सा छा गया। न कोई ग्रह प्रकाशित होता था, न नक्षत्र॥

अकस्मान्नागरः सर्वो जनो दैन्यमुपागमत्।
आहारे वा विहारे वा न कश्चिदकरोन्मनः॥ १५॥

सहसा सारे नागरिक दीन-दशा को प्राप्त हो गये। किसी ने भी आहार या विहार में मन नहीं लगाया॥ १५॥

शोकपर्यायसंतप्तः सततं दीर्घमुच्छ्वसन्।
अयोध्यायां जनः सर्वश्चुक्रोश जगतीपतिम्॥ १६॥

अयोध्यावासी सब लोग शोकपरम्परा से संतप्त हो निरन्तर लंबी साँस खींचते हुए राजा दशरथ को कोसने लगे॥१६॥

बाष्पपर्याकुलमुखो राजमार्गगतो जनः।
न हृष्टो लभ्यते कश्चित् सर्वः शोकपरायणः॥ १७॥

सड़क पर निकला हुआ कोई भी मनुष्य प्रसन्न नहीं दिखायी देता था। सबका मुख आँसुओं से भीगा हुआ था और सभी शोकमग्न हो रहे थे॥१७॥

न वाति पवनः शीतो न शशी सौम्यदर्शनः।
न सूर्यस्तपते लोकं सर्वं पर्याकुलं जगत्॥१८॥

शीतल वायु नहीं चलती थी। चन्द्रमा सौम्य नहीं दिखायी देता था। सूर्य भी जगत् को उचित मात्रा में ताप या प्रकाश नहीं दे रहा था। सारा संसार ही व्याकुल हो उठा था॥ १८॥

अनर्थिनः सुताः स्त्रीणां भर्तारो भ्रातरस्तथा।
सर्वे सर्वं परित्यज्य राममेवान्वचिन्तयन्॥१९॥

बालक माँ-बाप को भूल गये। पतियों को स्त्रियों की याद नहीं आती थी और भाई भाई का स्मरण नहीं करते थे—सभी सब कुछ छोड़कर केवल श्रीराम का ही चिन्तन करने लगे॥ १९॥

ये तु रामस्य सुहृदः सर्वे ते मूढचेतसः।
शोकभारेण चाक्रान्ताः शयनं नैव भेजिरे॥२०॥

जो श्रीराम के मित्र थे, वे सब तो और भी अपनी सुध-बुध खो बैठे थे। शोक के भार से आक्रान्त होने के कारण वे रात में सोये तक नहीं॥ २० ॥

ततस्त्वयोध्या रहिता महात्मना पुरन्दरेणेव मही सपर्वता।
चचाल घोरं भयशोकदीपिता सनागयोधाश्वगणा ननाद च॥२१॥

इस प्रकार सारी अयोध्यापुरी श्रीराम से रहित होकर भय और शोक से प्रज्वलित-सी होकर उसी प्रकार घोर हलचल में पड़ गयी, जैसे देवराज इन्द्र से रहित हुई मेरु-पर्वतसहित यह पृथ्वी डगमगाने लगती है। हाथी, घोड़े और सैनिकों सहित उस नगरी में भयंकर आर्तनाद होने लगा।

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे एकचत्वारिंशः सर्गः॥ ४१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में इकतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥४१॥


Spread the Glory of Sri SitaRam!

Shivangi

शिवांगी RamCharit.in को समृद्ध बनाने के लिए जनवरी 2019 से कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। यह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक एवं MBA (Gold Medalist) हैं। तकनीकि आधारित संसाधनों के प्रयोग से RamCharit.in पर गुणवत्ता पूर्ण कंटेंट उपलब्ध कराना इनकी जिम्मेदारी है जिसे यह बहुत ही कुशलता पूर्वक कर रही हैं।

One thought on “वाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग 41 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Ayodhyakanda Chapter 41

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सत्य सनातन फाउंडेशन (रजि.) भारत सरकार से स्वीकृत संस्था है। हिन्दू धर्म के वैश्विक संवर्धन-संरक्षण व निःशुल्क सेवाकार्यों हेतु आपके आर्थिक सहयोग की अति आवश्यकता है! हम धर्मग्रंथों को अनुवाद के साथ इंटरनेट पर उपलब्ध कराने हेतु अग्रसर हैं। कृपया हमें जानें और सहयोग करें!

X
error: