RamCharitManas (RamCharit.in)

इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड हिंदी अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग 6 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Ayodhyakanda Chapter 6

Spread the Glory of Sri SitaRam!

॥ श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः॥
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण
अयोध्याकाण्डम्
षष्ठः सर्गः (सर्ग 6)

सीता सहित श्रीराम का नियम परायण होना, हर्ष में भरे पुरवासियों द्वारा नगर की सजावट

 

गते पुरोहिते रामः स्नातो नियतमानसः।
सह पत्न्या विशालाक्ष्या नारायणमुपागमत्॥१॥

पुरोहितजी के चले जाने पर मन को संयम में रखने वाले श्रीराम ने स्नान करके अपनी विशाललोचना पत्नी के साथ श्रीनारायण की* उपासना आरम्भ की॥१॥
* ऐसा माना जाता है कि यहाँ नारायण शब्द से श्रीरङ्गनाथजी की वह अर्चा-मूर्ति अभिप्रेत है; जो कि पूर्वजों के समय से ही दीर्घकाल तक अयोध्या में उपास्य देवता के रूपमें  रही। बाद में श्रीरामजी ने वह मूर्ति विभीषण को दे दी थी, जिससे वह वर्तमान श्रीरंगक्षेत्र में पहुँची। इसकी विस्तृत कथा पद्मपुराणमें है।

प्रगृह्य शिरसा पात्री हविषो विधिवत् ततः।
महते दैवतायाज्यं जुहाव ज्वलितानले ॥२॥

उन्होंने हविष्य-पात्रको सिर झुकाकर नमस्कार किया और प्रज्वलित अग्निमें महान् देवता (शेषशायी नारायण) की प्रसन्नताके लिये विधिपूर्वक उस हविष्यकी आहुति दी॥२॥

शेषं च हविषस्तस्य प्राश्याशास्यात्मनः प्रियम्।
ध्यायन्नारायणं देवं स्वास्तीर्णे कुशसंस्तरे॥३॥
वाग्यतः सह वैदेह्या भूत्वा नियतमानसः।।
श्रीमत्यायतने विष्णोः शिश्ये नरवरात्मजः॥४॥

तत्पश्चात् अपने प्रिय मनोरथ की सिद्धिका संकल्प लेकर उन्होंने उस यज्ञशेष हविष्य का भक्षण किया और मन को संयम में रखकर मौन हो वे राजकुमार श्रीराम विदेहनन्दिनी सीता के साथ भगवान् विष्णु के सुन्दर मन्दिर में श्रीनारायण देव का ध्यान करते हुए वहाँ अच्छी तरह बिछी हुई कुश की चटाईपर सोये॥ ३-४॥

एकयामावशिष्टायां रात्र्यां प्रतिविबुध्य सः।
अलंकारविधिं सम्यक् कारयामास वेश्मनः॥५॥

जब तीन पहर बीतकर एक ही पहर रात शेष रह गयी, तब वे शयन से उठ बैठे। उस समय उन्होंने सभामण्डप को सजाने के लिये सेवकों को आज्ञा दी॥

तत्र शृण्वन् सुखा वाचः सूतमागधवन्दिनाम्।
पूर्वां संध्यामुपासीनो जजाप सुसमाहितः॥६॥

वहाँ सूत, मागध और बंदियों की श्रवणसुखद वाणी सुनते हुए श्रीराम ने प्रातःकालिक संध्योपासना की; फिर एकाग्रचित्त होकर वे जप करने लगे॥६॥

तुष्टाव प्रणतश्चैव शिरसा मधुसूदनम्।
विमलक्षौमसंवीतो वाचयामास स द्विजान्॥७॥

तदनन्तर रेशमी वस्त्र धारण किये हुए श्रीराम ने मस्तक झुकाकर भगवान् मधुसूदन को प्रणाम और उनका स्तवन किया; इसके बाद ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराया॥७॥

तेषां पुण्याहघोषोऽथ गम्भीरमधुरस्तथा।
अयोध्यां पूरयामास तूर्यघोषानुनादितः॥८॥

उन ब्राह्मणों का पुण्याहवाचन सम्बन्धी गम्भीर एवं मधुर घोष नाना प्रकार के वाद्यों की ध्वनि से व्याप्त होकर सारी अयोध्यापुरी में फैल गया॥८॥

कृतोपवासं तु तदा वैदेह्या सह राघवम्।
अयोध्यानिलयः श्रुत्वा सर्वः प्रमुदितो जनः॥९॥

उस समय अयोध्यावासी मनुष्यों ने जब यह सुना कि श्रीरामचन्द्रजी ने सीताके साथ उपवास-व्रत आरम्भ कर दिया है, तब उन सबको बड़ी प्रसन्नता हुई॥९॥

ततः पौरजनः सर्वः श्रुत्वा रामाभिषेचनम्।
प्रभातां रजनीं दृष्ट्वा चक्रे शोभयितुं पुरीम्॥ १०॥

सबेरा होने पर श्रीराम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर समस्त पुरवासी अयोध्यापुरी को सजाने में लग गये॥ १० ॥

सिताभ्रशिखराभेषु देवतायतनेषु च।
चतुष्पथेषु रथ्यासु चैत्येष्वट्टालकेषु च ॥११॥
नानापण्यसमृद्धेषु वणिजामापणेषु च।
कुटुम्बिनां समृद्धेषु श्रीमत्सु भवनेषु च ॥१२॥
सभासु चैव सर्वासु वृक्षेष्वालक्षितेषु च।
ध्वजाः समुच्छ्रिताः साधु पताकाश्चाभवंस्तथा॥ १३॥

जिनके शिखरों पर श्वेत बादल विश्राम करते हैं, उन पर्वतों के समान गगनचुम्बी देवमन्दिरों, चौराहों, गलियों, देववृक्षों, समस्त सभाओं, अट्टालिकाओं, नाना प्रकार की बेचने योग्य वस्तुओं से भरी हुई व्यापारियों की बड़ी-बड़ी दूकानों तथा कुटुम्बी गृहस्थों के सुन्दर समृद्धिशाली भवनों में और दर से दिखायी देने वाले वृक्षों पर भी ऊँची ध्वजाएँ लगायी गयीं और उनमें पताकाएँ फहरायी गयीं॥ ११–१३॥

नटनर्तकसङ्घानां गायकानां च गायताम्।
मनःकर्णसुखा वाचः शुश्राव जनता ततः॥१४॥

उस समय वहाँ की जनता सब ओर नटों और नर्तकों के समूहों तथा गाने वाले गायकों की मन और कानों को सुख देने वाली वाणी सुनती थी॥ १४ ॥

रामाभिषेकयुक्ताश्च कथाश्चक्रुर्मिथो जनाः।
रामाभिषेके सम्प्राप्ते चत्वरेषु गृहेषु च ॥१५॥

श्रीराम के राज्याभिषेक का शुभ अवसर प्राप्त होने पर प्रायः सब लोग चौराहों पर और घरों में भी आपस में श्रीराम के राज्याभिषेक की ही चर्चा करते थे॥ १५॥

बाला अपि क्रीडमाना गृहद्वारेषु सङ्घशः।
रामाभिषवसंयुक्ताश्चक्रुरेव कथा मिथः॥१६॥

घरों के दरवाजों पर खेलते हुए झुंड-के-झुंड बालक भी आपस में श्रीराम के राज्याभिषेक की ही बातें करते थे॥१६॥

कृतपुष्पोपहारश्च धूपगन्धाधिवासितः।
राजमार्गः कृतः श्रीमान् पौरै रामाभिषेचने॥ १७॥

पुरवासियों ने श्रीराम के राज्याभिषेक के समय राजमार्ग पर फूलों की भेंट चढ़ाकर वहाँ सब ओर धूप की सुगन्ध फैला दी; ऐसा करके उन्होंने राजमार्ग को बहुत सुन्दर बना दिया॥ १७ ॥

प्रकाशकरणार्थं च निशागमनशङ्कया।
दीपवृक्षांस्तथा चक्रुरनुरथ्यासु सर्वशः॥१८॥

राज्याभिषेक होते-होते रात हो जाने की आशङ्का से प्रकाश की व्यवस्था करने के लिये पुरवासियों ने सब ओर सड़कों के दोनों तरफ वृक्ष की भाँति अनेक शाखाओं से युक्त दीपस्तम्भ खड़े कर दिये॥ १८॥

अलंकारं पुरस्यैवं कृत्वा तत् पुरवासिनः।
आकांक्षमाणा रामस्य यौवराज्याभिषेचनम्॥ १९॥
समेत्य सङ्घशः सर्वे चत्वरेषु सभासु च।
कथयन्तो मिथस्तत्र प्रशशंसुर्जनाधिपम्॥२०॥

इस प्रकार नगर को सजाकर श्रीराम के युवराज पद पर अभिषेक की अभिलाषा रखने वाले समस्त पुरवासी चौराहों और सभाओं में झुंड-के-झुंड एकत्र हो वहाँ परस्पर बातें करते हुए महाराज दशरथ की प्रशंसा करने लगे—॥

अहो महात्मा राजायमिक्ष्वाकुकुलनन्दनः।
ज्ञात्वा वृद्धं स्वमात्मानं रामं राज्येऽभिषेक्ष्यति॥ २१॥

‘अहो! इक्ष्वाकुकुल को आनन्दित करने वाले ये राजा दशरथ बड़े महात्मा हैं, जो कि अपने-आपको बूढ़ा हुआ जानकर श्रीराम का राज्याभिषेक करने जा रहे हैं।

सर्वे ह्यनुगृहीताः स्म यन्नो रामो महीपतिः।
चिराय भविता गोप्ता दृष्टलोकपरावरः॥२२॥

‘भगवान् का हम सब लोगों पर बड़ा अनुग्रह है कि श्रीरामचन्द्रजी हमारे राजा होंगे और चिरकाल तक हमारी रक्षा करते रहेंगे; क्योंकि वे समस्त लोकों के निवासियों में जो भलाई या बुराई है, उसे अच्छी तरह देख चुके हैं।

अनुद्धतमना विद्वान् धर्मात्मा भ्रातृवत्सलः।
यथा च भ्रातृषु स्निग्धस्तथास्मास्वपि राघवः॥ २३॥

‘श्रीराम का मन कभी उद्धत नहीं होता। वे विद्वान्, धर्मात्मा और अपने भाइयों पर स्नेह रखने वाले हैं। उनका अपने भाइयों पर जैसा स्नेह है, वैसा ही हम लोगों पर भी है।

चिरं जीवतु धर्मात्मा राजा दशरथोऽनघः।
यत्प्रसादेनाभिषिक्तं रामं द्रक्ष्यामहे वयम्॥२४॥

‘धर्मात्मा एवं निष्पाप राजा दशरथ चिरकालतक जीवित रहें, जिनके प्रसाद से हमें श्रीराम के राज्याभिषेक का दर्शन सुलभ होगा’ ॥ २४॥

एवंविधं कथयतां पौराणां शुश्रुवुः परे।
दिग्भ्यो विश्रुतवृत्तान्ताः प्राप्ता जानपदा जनाः॥ २५॥

अभिषेक का वृत्तान्त सुनकर नाना दिशाओं से उस जनपद के लोग भी वहाँ पहुँचे थे, उन्होंने उपर्युक्त बातें कहने वाले पुरवासियों की सभी बातें सुनीं ॥ २५ ॥

ते तु दिग्भ्यः पुरीं प्राप्ता द्रष्टुं रामाभिषेचनम्।
रामस्य पूरयामासुः पुरीं जानपदा जनाः॥२६॥

वे सब-के-सब श्रीराम का राज्याभिषेक देखने के लिये अनेक दिशाओं से अयोध्यापुरी में आये थे। उनजनपद निवासी मनुष्यों ने श्रीरामपुरी को अपनी उपस्थिति से भर दिया था॥ २६ ॥

जनौघैस्तैर्विसर्पद्भिः शुश्रुवे तत्र निःस्वनः।
पर्वसूदीर्णवेगस्य सागरस्येव निःस्वनः॥२७॥

वहाँ मनुष्यों की भीड़-भाड़ बढ़ने से जो जनरव सुनायी देता था, वह पर्वो के दिन बढ़े हुए वेग वाले महासागर की गर्जना के समान जान पड़ता था॥ २७॥

ततस्तदिन्द्रक्षयसंनिभं पुरं दिदृक्षुभिर्जानपदैरुपाहितैः।
समन्ततः सस्वनमाकुलं बभौ समुद्रयादोभिरिवार्णवोदकम्॥२८॥

उस समय श्रीराम के अभिषेक का उत्सव देखने के लिये पधारे हुए जनपदवासी मनुष्यों द्वारा सब ओर से भरा हुआ वह इन्द्रपुरी के समान नगर अत्यन्त कोलाहलपूर्ण होने के कारण मकर, नक्र, तिमिङ्गल आदि विशाल जल-जन्तुओं से परिपूर्ण महासागर के समान प्रतीत होता था॥ २८॥

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे षष्ठः सर्गः॥६॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में छठा सर्ग पूरा हुआ।६॥


Spread the Glory of Sri SitaRam!

Shivangi

शिवांगी RamCharit.in को समृद्ध बनाने के लिए जनवरी 2019 से कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। यह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक एवं MBA (Gold Medalist) हैं। तकनीकि आधारित संसाधनों के प्रयोग से RamCharit.in पर गुणवत्ता पूर्ण कंटेंट उपलब्ध कराना इनकी जिम्मेदारी है जिसे यह बहुत ही कुशलता पूर्वक कर रही हैं।

2 thoughts on “वाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग 6 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Ayodhyakanda Chapter 6

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सत्य सनातन फाउंडेशन (रजि.) भारत सरकार से स्वीकृत संस्था है। हिन्दू धर्म के वैश्विक संवर्धन-संरक्षण व निःशुल्क सेवाकार्यों हेतु आपके आर्थिक सहयोग की अति आवश्यकता है! हम धर्मग्रंथों को अनुवाद के साथ इंटरनेट पर उपलब्ध कराने हेतु अग्रसर हैं। कृपया हमें जानें और सहयोग करें!

X
error: