RamCharitManas (RamCharit.in)

इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड हिंदी अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग 68 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Ayodhyakanda Chapter 68

Spread the Glory of Sri SitaRam!

॥ श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः॥
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण
अयोध्याकाण्डम्
अष्टषष्टितमः सर्गः (सर्ग 68)

वसिष्ठजी की आज्ञा से पाँच दूतों का अयोध्या से केकयदेश के राजगृह नगर में जाना

तेषां तद् वचनं श्रुत्वा वसिष्ठः प्रत्युवाच ह।
मित्रामात्यजनान् सर्वान् ब्राह्मणांस्तानिदं वचः॥

मार्कण्डेय आदि के ऐसे वचन सुनकर महर्षि वसिष्ठ ने मित्रों, मन्त्रियों और उन समस्त ब्राह्मणों को इस प्रकार उत्तर दिया- ॥१॥

यदसौ मातुलकुले दत्तराज्यः परं सुखी।
भरतो वसति भ्रात्रा शत्रुघ्नेन मुदान्वितः॥२॥

‘राजा दशरथ ने जिनको राज्य दिया है, वे भरत इस समय अपने भाई शत्रुघ्न के साथ मामा के यहाँ बड़े सुख और प्रसन्नता के साथ निवास करते हैं ॥२॥

तच्छीघ्रं जवना दूता गच्छन्तु त्वरितं हयैः।
आनेतुं भ्रातरौ वीरौ किं समीक्षामहे वयम्॥३॥

उन दोनों वीर बन्धुओं को बुलाने के लिये शीघ्र ही तेज चलने वाले दूत घोड़ों पर सवार होकर यहाँ से जायँ, इसके सिवा हमलोग और क्या विचार कर सकते हैं?’ ॥३॥

गच्छन्त्विति ततः सर्वे वसिष्ठं वाक्यमब्रुवन्।
तेषां तद् वचनं श्रुत्वा वसिष्ठो वाक्यमब्रवीत्॥ ४॥

इस पर सबने वसिष्ठजी से कहा—’हाँ, दूत अवश्य भेजे जायँ।’ उनका वह कथन सुनकर वसिष्ठजी ने दूतों को सम्बोधित करके कहा— ॥ ४॥

एहि सिद्धार्थ विजय जयन्ताशोकनन्दन।
श्रयतामितिकर्तव्यं सर्वानेव ब्रवीमि वः॥५॥

‘सिद्धार्थ! विजय! जयन्त! अशोक ! और नन्दन ! । तुम सब यहाँ आओ और तुम्हें जो काम करना है,उसे सुनो। मैं तुम सब लोगोंसे ही कहता हूँ॥ ५॥

पुरं राजगृहं गत्वा शीघ्रं शीघ्रजवैर्हयैः।
त्यक्तशोकैरिदं वाच्यः शासनाद् भरतो मम॥६॥

‘तुमलोग शीघ्रगामी घोड़ों पर सवार होकर तुरंत ही राजगृह नगर को जाओ और शोक का भाव न प्रकट करते हुए मेरी आज्ञा के अनुसार भरत से इस प्रकार कहो॥६॥

पुरोहितस्त्वां कुशलं प्राह सर्वे च मन्त्रिणः।
त्वरमाणश्च निर्याहि कृत्यमात्ययिकं त्वया॥७॥

‘कुमार! पुरोहित जी तथा समस्त मन्त्रियों ने आपसे कुशल-मङ्गल कहा है। अब आप यहाँ से शीघ्र ही चलिये। अयोध्या में आपसे अत्यन्त आवश्यक कार्य है।

मा चास्मै प्रोषितं रामं मा चास्मै पितरं मृतम्।
भवन्तः शंसिषुर्गत्वा राघवाणामितः क्षयम्॥८॥

‘भरत को श्रीरामचन्द्र के वनवास और पिता की मृत्यु का हाल मत बतलाना और इन परिस्थितियों के कारण रघुवंशियों के यहाँ जो कुहराम मचा हुआ है, इसकी चर्चा भी न करना॥ ८॥

कौशेयानि च वस्त्राणि भूषणानि वराणि च।
क्षिप्रमादाय राज्ञश्च भरतस्य च गच्छत॥९॥

‘केकयराज तथा भरत को भेंट देने के लिये रेशमीवस्त्र और उत्तम आभूषण लेकर तुमलोग यहाँ से शीघ्र चल दो’।

दत्तपथ्यशना दूता जग्मुः स्वं स्वं निवेशनम्।
केकयांस्ते गमिष्यन्तो हयानारुह्य सम्मतान्॥ १०॥

केकय देश को जाने वाले वे दूत रास्ते का खर्च ले अच्छे घोड़ों पर सवार हो अपने-अपने घर को गये। १०॥

ततः प्रास्थानिकं कृत्वा कार्यशेषमनन्तरम्।
वसिष्ठेनाभ्यनुज्ञाता दूताः संत्वरितं ययुः॥११॥

तदनन्तर यात्रा सम्बन्धी शेष तैयारी पूरी करके वसिष्ठजी की आज्ञा ले सभी दूत तुरंत वहाँ से प्रस्थित हो गये॥११॥

न्यन्तेनापरतालस्य प्रलम्बस्योत्तरं प्रति।
निषेवमाणास्ते जग्मुर्नदीं मध्येन मालिनीम्॥ १२॥

अपरताल नामक पर्वत के अन्तिम छोर अर्थात दक्षिण भाग और प्रलम्बगिरि के उत्तरभाग में दोनों पर्वतों के बीच से बहने वाली मालिनी नदी के तटपर होते हुए वे दूत आगे बढ़े॥ १२ ॥

ते हास्तिनपुरे गङ्गां तीर्वा प्रत्यङ्मुखा ययुः।
पाञ्चालदेशमासाद्य मध्येन कुरुजाङ्गलम्॥१३॥

हस्तिनापुर में गङ्गा को पार करके वे पश्चिम की ओर गये और पाञ्चाल देश में पहुँचकर कुरुजाङ्गल प्रदेश के बीच से होते हुए आगे बढ़ गये॥१३॥

सरांसि च सुफुल्लानि नदीश्च विमलोदकाः।
निरीक्षमाणा जग्मुस्ते दूताः कार्यवशाद्रुतम्॥ १४॥

मार्ग में सुन्दर फूलों से सुशोभित सरोवरों तथा निर्मल जलवाली नदियों का दर्शन करते हुए वे दूत कार्यवश तीव्र-गति से आगे बढ़ते गये॥१४॥

ते प्रसन्नोदकां दिव्यां नानाविहगसेविताम्।
उपातिजग्मुर्वेगेन शरदण्डां जलाकुलाम्॥१५॥

तदनन्तर वे स्वच्छ जल से सुशोभित, पानी से भरी हुई और भाँति-भाँति के पक्षियों से सेवित दिव्य नदी शरदण्डा के तट पर पहुँचकर उसे वेगपूर्वक लाँघ गये॥ १५॥

निकूलवृक्षमासाद्य दिव्यं सत्योपयाचनम्।
अभिगम्याभिवाद्यं तं कुलिङ्गां प्राविशन् पुरीम्॥ १६॥

शरदण्डा के पश्चिम तट पर एक दिव्य वृक्ष था, जिसपर किसी देवता का आवास था; इसीलिये वहाँ जो याचना की जाती थी, वह सत्य (सफल) होती थी, अतः उसका नाम सत्योपयाचन हो गया था। उस वन्दनीय वृक्ष के निकट पहुँचकर दूतों ने उसकी परिक्रमा की और वहाँ से आगे जाकर उन्होंने कुलिङ्गा नामक पुरी में प्रवेश किया॥

अभिकालं ततः प्राप्य तेजोऽभिभवनाच्च्युताः।
पितृपैतामहीं पुण्यां तेरुरिक्षुमती नदीम्॥१७॥

वहाँसे तेजोऽभिभवन नामक गाँव को पार करते हुए वे अभिकाल नामक गाँव में पहुँचे और वहाँ से आगे बढ़ने पर उन्होंने राजा दशरथ के पिता-पितामहों द्वारा सेवित पुण्यसलिला इक्षुमती नदी को पार किया॥ १७॥

अवेक्ष्याञ्जलिपानांश्च ब्राह्मणान् वेदपारगान्।
ययुर्मध्येन बालीकान् सुदामानं च पर्वतम्॥ १८॥

वहाँ केवल अञ्जलि भर जल पीकर तपस्या करने वाले वेदों के पारगामी ब्राह्मणों का दर्शन करके वे दत बालीक देश के मध्यभाग में स्थित सुदामा नामक पर्वत के पास जा पहुँचे॥ १८ ॥

विष्णोः पदं प्रेक्ष्यमाणा विपाशां चापि शाल्मलीम्।
नदीर्वापीतटाकानि पल्वलानि सरांसि च॥१९॥
पश्यन्तो विविधांश्चापि सिंहान् व्याघ्रान् मृगान् द्विपान्।
ययुः पथातिमहता शासनं भर्तुरीप्सवः॥२०॥

उस पर्वत के शिखर पर स्थित भगवान् विष्णु के चरणचिह्न का दर्शन करके वे विपाशा (व्यास) नदी और उसके तटवर्ती शाल्मली वृक्ष के निकट गये।वहाँ से आगे बढ़ने पर बहुत-सी नदियों, बावड़ियों, पोखरों, छोटे-तालाबों, सरोवरों तथा भाँति-भाँति के वन जन्तुओं—सिंह, व्याघ्र,मृग और हाथियों का दर्शन करते हुए वे दूत अत्यन्त विशाल मार्ग के द्वारा आगे बढ़ने लगे। वे अपने स्वामी की आज्ञा का शीघ्र पालन करनेकी इच्छा रखते थे॥ १९-२० ॥

ते श्रान्तवाहना दूता विकृष्टेन सता पथा।
गिरिव्रजं पुरवरं शीघ्रमासेदुरञ्जसा॥२१॥

उन दूतों के वाहन (घोड़े) चलते-चलते थक गये । थे। वह मार्ग बड़ी दूर का होने पर उपद्रव से रहित था।उसे तै करके सारे दूत शीघ्र ही बिना किसी कष्ट के श्रेष्ठ नगर गिरिव्रज में जा पहुँचे॥ २१॥

भर्तुः प्रियार्थं कुलरक्षणार्थं भर्तुश्च वंशस्य परिग्रहार्थम्।
अहेडमानास्त्वरया स्म दूता रात्र्यां तु ते तत्पुरमेव याताः॥ २२॥

अपने स्वामी (आज्ञा देनेवाले वसिष्ठजी) का प्रिय और प्रजावर्ग की रक्षा करने तथा महाराज दशरथ के वंशपरम्परागत राज्य को भरतजी से स्वीकार कराने के लिये सादर तत्पर हुए वे दूत बड़ी उतावली के साथ चलकर रात में ही उस नगर में जा पहुँचे॥ २२॥

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डेऽष्टषष्टितमः सर्गः॥६८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के अयोध्याकाण्ड में अरसठवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ६८॥


Spread the Glory of Sri SitaRam!

Shivangi

शिवांगी RamCharit.in को समृद्ध बनाने के लिए जनवरी 2019 से कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। यह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक एवं MBA (Gold Medalist) हैं। तकनीकि आधारित संसाधनों के प्रयोग से RamCharit.in पर गुणवत्ता पूर्ण कंटेंट उपलब्ध कराना इनकी जिम्मेदारी है जिसे यह बहुत ही कुशलता पूर्वक कर रही हैं।

One thought on “वाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग 68 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Ayodhyakanda Chapter 68

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सत्य सनातन फाउंडेशन (रजि.) भारत सरकार से स्वीकृत संस्था है। हिन्दू धर्म के वैश्विक संवर्धन-संरक्षण व निःशुल्क सेवाकार्यों हेतु आपके आर्थिक सहयोग की अति आवश्यकता है! हम धर्मग्रंथों को अनुवाद के साथ इंटरनेट पर उपलब्ध कराने हेतु अग्रसर हैं। कृपया हमें जानें और सहयोग करें!

X
error: