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वाल्मीकि रामायण संपूर्णवाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड हिंदी अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Sundarakanda with Hindi Meaning

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वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड श्लोक हिंदी अर्थ सहित

Valmiki Ramayana Sundarakanda with Hindi Meaning

काण्ड परिचय:

श्राद्धेषु देवकार्येषु पठेत् सुन्दरकाण्डम्॥

वाल्मीकि रामायण के इस सर्वाधिक लोकप्रिय काण्ड में 68 सर्ग हैं जो कुल 2,855 श्लोकों का संग्रह है। धार्मिक दृष्टि से काण्ड का पारायण समाज में बहुधा प्रचलित है। बृहद्धर्मपुराण में वर्णित उपरोक्त श्लोक के अनुसार श्राद्ध तथा देवकार्य में इसके पाठ का विधान है।

सुन्दर काण्ड में हनुमान द्वारा समुद्रलंघन करके लंका पहुँचना, सुरसा वृत्तान्त, लंकापुरी वर्णन, रावण के अन्त:पुर में प्रवेश तथा वहाँ का सरस वर्णन, अशोक वाटिका में प्रवेश तथा हनुमान के द्वारा सीता का दर्शन, सीता तथा रावण संवाद, सीता को राक्षसियों के तर्जन की प्राप्ति, सीता-त्रिजटा-संवाद, स्वप्न-कथन, शिंशपा वृक्ष में अवलीन हनुमान का नीचे उतरना तथा सीता से अपने को राम का दूत बताना, राम की अंगूठी सीता को दिखाना, “मैं केवल एक मास तक जीवित रहूँगी, उसके पश्चात् नहीं” -ऐसा सन्देश सीता के द्वारा हनुमान को देना, लंका के चैत्य-प्रासादों को उखाड़ना तथा राक्षसों को मारना आदि हनुमान कृत्य वर्णित हैं।

इस काण्ड में अक्षकुमार का वध, हनुमान का मेघनाद के साथ युद्ध, मेघनाद के द्वारा ब्रह्मास्त्र से हनुमान का बन्धनपूर्वक रावण के दरबार में प्रवेश, रावण-हनुमान-संवाद, विभीषण के द्वारा दूतवध न करने का परामर्श, हनुमान की पूँछ जलाने की आज्ञा, लंका-दहन, हनुमान का सीता-दर्शन के पश्चात् प्रत्यावर्तन, समाचार-कथन, दधिमुख-वृत्तान्त, हनुमान के द्वारा सीता से ली गई काञ्चनमणि राम को समर्पित करना, तथा सीता की दशा आदि का वर्णन किया गया है।

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सर्ग एवं विषय:

सर्ग 1: हनुमान् जी के द्वारा समुद्र का लङ्घन, मैनाक के द्वारा उनका स्वागत, सुरसा पर उनकी विजय तथा सिंहिका का वध,लंका की शोभा देखना

सर्ग 2: लंकापुरी का वर्णन, उसमें प्रवेश करने के विषय में हनुमान जी का विचार, उनका लघुरूप से पुरी में प्रवेश तथा चन्द्रोदय का वर्णन

सर्ग 3: लंकापुरी का अवलोकन करके हनुमान् जी का विस्मित होना, निशाचरी लंका का उन्हें रोकना और उनकी मार से विह्वल होकर प्रवेश की अनुमति देना

सर्ग 4: हनुमान जी का लंकापुरी एवं रावण के अन्तःपुर में प्रवेश

सर्ग 5: हनुमान जी का रावणके अन्तःपुरमें घर-घरमें सीताको ढूँढ़ना और उन्हें न देखकर दुःखी होना

सर्ग 6: हनुमान जी का रावण तथा अन्यान्य राक्षसों के घरों में सीताजी की खोज करना

सर्ग 7: रावण के भवन एवं पुष्पक विमान का वर्णन

सर्ग 8: हनुमान् जी के द्वारा पुनः पुष्पक विमान का दर्शन

सर्ग 9: हनुमान जी का रावण के श्रेष्ठ भवन पुष्पक विमान तथा रावण के रहने की सुन्दर हवेली को देखकर उसके भीतर सोयी हुई सहस्रों सुन्दरी स्त्रियों का अवलोकन करना

सर्ग 10: हनुमान जी का अन्तःपुर में सोये हुए रावण तथा गाढ़ निद्रा में पड़ी हुई उसकी स्त्रियों को देखना तथा मन्दोदरी को सीता समझकर प्रसन्न होना

सर्ग 11: हनुमान जी का पुनः अन्तःपुर में और उसकी पानभूमि में सीता का पता लगाना, धर्मलोप की आशंका और स्वतः उसका निवारण होना

सर्ग 12: सीता के मरण की आशंका से हनुमान्जी का शिथिल होना, फिर उत्साह का आश्रय ले उनकी खोज करना और कहीं भी पता न लगने से पुनः उनका चिन्तित होना

सर्ग 13: सीताजी के नाश की आशंका से हनुमान्जी की चिन्ता, श्रीराम को सीता के न मिलने की सचना देने से अनर्थ की सम्भावना देख हनुमान का पुनः खोजने का विचार करना

सर्ग 14: हनुमान जी का अशोकवाटिका में प्रवेश करके उसकी शोभा देखना तथा एक अशोकवृक्ष पर छिपे रहकर वहीं से सीता का अनुसन्धान करना

सर्ग 15: वन की शोभा देखते हुए हनुमान जी का एक चैत्यप्रासाद (मन्दिर)के पास सीता को दयनीय अवस्था में देखना, पहचानना और प्रसन्न होना

सर्ग 16: हनुमान जी का मन-ही-मन सीताजी के शील और सौन्दर्य की सराहना करते हुए उन्हें कष्ट में पड़ी देख स्वयं भी उनके लिये शोक करना

सर्ग 17: भयंकर राक्षसियों से घिरी हुई सीता के दर्शन से हनुमान जी का प्रसन्न होना

सर्ग 18: अपनी स्त्रियों से घिरे हुए रावण का अशोकवाटिका में आगमन और हनुमान जी का उसे देखना

सर्ग 19: रावण को देखकर दुःख, भय और चिन्ता में डूबी हुई सीता की अवस्था का वर्णन

सर्ग 20: रावण का सीताजी को प्रलोभन

सर्ग 21: सीताजी का रावण को समझाना और उसे श्रीराम के सामने नगण्य बताना

सर्ग 22: रावण का सीता को दो मास की अवधि देना, सीता का उसे फटकारना, फिर रावण का उन्हें धमकाना

सर्ग 23: राक्षसियों का सीताजी को समझाना

सर्ग 24: सीताजी का राक्षसियों की बात मानने से इनकार कर देना तथा राक्षसियों का उन्हें मारने-काटने की धमकी देना

सर्ग 25: राक्षसियों की बात मानने से इनकार करके शोक-संतप्त सीता का विलाप करना

सर्ग 26: सीता का करुण-विलाप तथा अपने प्राणों को त्याग देने का निश्चय करना

सर्ग 27: त्रिजटा का स्वप्न, राक्षसों के विनाश और श्रीरघुनाथजी की विजय की शुभ सूचना

सर्ग 28: विलाप करती हुई सीताका प्राण त्यागके लिये उद्यत होना

सर्ग 29: सीताजी के शुभ शकुन

सर्ग 30:  सीताजी से वार्तालाप करने के विषय में हनुमान जी का विचार करना

सर्ग 31: हनुमान जी का सीता को सुनाने के लिये श्रीराम-कथा का वर्णन करना

सर्ग 32: सीताजी का तर्क-वितर्क

सर्ग 33: सीताजी का हनुमान जी को अपना परिचय देते हुए अपने वनगमन और अपहरण का वृत्तान्त बताना

सर्ग 34: सीताजी का हनुमान् जी के प्रति संदेह और उसका समाधान तथा हनुमान् जी के द्वारा श्रीरामचन्द्रजी के गुणों का गान

सर्ग 35: सीताजी के पूछने पर हनुमान जी का श्रीराम के शारीरिक चिह्नों और गुणों का वर्णन करना तथा नर-वानर की मित्रता का प्रसङ्ग सुनाकर सीताजी के मन में विश्वास उत्पन्न करना

सर्ग 36: हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, सीता का ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान् का श्रीराम के सीताविषयक प्रेम का वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना

सर्ग 37: सीता का हनुमान जी से श्रीराम को शीघ्र बुलाने का आग्रह, हनुमान जी का सीता से अपने साथ चलने का अनुरोध तथा सीता का अस्वीकार करना

सर्ग 38: सीताजी का हनुमान जी को पहचान के रूप में चित्रकट पर्वत पर घटित हए एक कौए के प्रसंग को सुनाना, श्रीराम को शीघ्र बुलाने के लिये अनुरोध करना और चूड़ामणि देना

सर्ग 39: समद्र-तरण के विषय में शङ्कित हुई सीता को वानरों का पराक्रम बताकर हनुमान जी का आश्वासन देना

सर्ग 40: सीता का श्रीराम से कहने के लिये पुनः संदेश देना तथा हनुमान जी का उन्हें आश्वासन दे उत्तर-दिशा की ओर जाना

सर्ग 41: हनुमान जी के द्वारा प्रमदावन (अशोकवाटिका)-का विध्वंस

सर्ग 42: राक्षसियों के मुख से एक वानर के द्वारा प्रमदावन के विध्वंस का समाचार सुनकर रावण का किंकर नामक राक्षसों को भेजना और हनुमान जी के द्वारा उन सबका संहार

सर्ग 43: हनुमान जी के द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस तथा उसके रक्षकों का वध

सर्ग 44: प्रहस्त-पुत्र जम्बुमाली का वध

सर्ग 45: मन्त्री के सात पुत्रों का वध

सर्ग 46: रावण के पाँच सेनापतियों का वध

सर्ग 47: रावणपुत्र अक्षकुमार का पराक्रम और वध

सर्ग 48: इन्द्रजित् और हनुमान जी का युद्ध, उसके दिव्यास्त्र के बन्धन में बँधकर हनुमान् जी का रावण के दरबार में उपस्थित होना

सर्ग 49: रावण के प्रभावशाली स्वरूप को देखकर हनुमान जी के मन में अनेक प्रकार के विचारों का उठना

सर्ग 50: रावण का प्रहस्त के द्वारा हनुमान जी सेलङ्का में आने का कारण पुछवाना और हनुमान् का अपने को श्रीराम का दूत बताना

सर्ग 51: हनुमान जी का श्रीराम के प्रभाव का वर्णन करते हुए रावण को समझाना

सर्ग 52: विभीषण का दूत के वध को अनुचित बताकर उसे दूसरा कोई दण्ड देने के लिये कहना तथा रावण का उनके अनरोध को स्वीकार कर लेना

सर्ग 53: राक्षसों का हनुमान जी की पूँछ में आग लगाकर उन्हें नगर में घुमाना

सर्ग 54: लङ्कापुरी का दहन और राक्षसों का विलाप

सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण

सर्ग 56: हनुमान जी का पुनः सीताजी से मिलकर लौटना और समुद्र को लाँघना

सर्ग 57: हनुमान जी का समद्र को लाँघकर जाम्बवान् और अङ्गद आदि सुहृदों से मिलना

सर्ग 58: जाम्बवान् के पूछने पर हनुमान जी का अपनी लङ्का यात्रा का सारा वृत्तान्त सुनाना

सर्ग 59: हनुमान जी का सीता की दुरवस्था बताकर वानरों को लङ्का पर आक्रमण करने के लिये उत्तेजित करना

सर्ग 60: अङ्गद का लङ्का को जीतकर सीता को ले आने का उत्साहपूर्ण विचार और जाम्बवान् के द्वारा उसका निवारण

सर्ग 61: वानरों का मधुवन में जाकर वहाँ के मधु एवं फलों का मनमाना उपभोग करना और वनरक्षक को घसीटना

सर्ग 62: वानरों द्वारा मधुवन के रक्षकों और दधिमुख का पराभव तथा सेवकों सहितदधिमुख का सुग्रीव के पास जाना

सर्ग 63: दधिमुख से मधुवन के विध्वंस का समाचार सुनकर सुग्रीव का हनुमान् आदि वानरों की सफलता के विषय में अनुमान

सर्ग 64: दधिमुख से सुग्रीव का संदेश सुनकर अङ्गद-हनुमान् आदि वानरों का किष्किन्धा में पहुँचना और हनमान जी का श्रीराम को प्रणाम करके सीता देवी के दर्शन का समाचार बताना

सर्ग 65: हनुमान जी का श्रीराम को सीता का समाचार सुनाना

सर्ग 66: चूडामणि को देखकर और सीता का समाचार पाकर श्रीराम का उनके लिए विलाप

सर्ग 67: हनुमान जी का भगवान् श्रीराम को सीता का संदेश सुनाना

सर्ग 68: हनुमान जी का सीता के संदेह और अपने द्वारा उनके निवारण का वृत्तान्त बताना

। सुन्दरकाण्डं सम्पूर्णम् ।


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Shivangi

शिवांगी RamCharit.in को समृद्ध बनाने के लिए जनवरी 2019 से कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। यह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक एवं MBA (Gold Medalist) हैं। तकनीकि आधारित संसाधनों के प्रयोग से RamCharit.in पर गुणवत्ता पूर्ण कंटेंट उपलब्ध कराना इनकी जिम्मेदारी है जिसे यह बहुत ही कुशलता पूर्वक कर रही हैं।

9 thoughts on “वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Sundarakanda with Hindi Meaning

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  • Vijay vyas

    बहुत अच्छी सुविधा मिल गई। हमें वाल्मीकि रामायण का अखंड पाठ करने में काम आयेगी। धन्यवाद। जय श्री राम 🙏🌹

    Reply
    • राम किशोर पाण्डेय्

      जय श्री राम। माननीय संपादक महोदय।
      सप्रेम नमस्कार।
      संभवतःयांत्रिक भूल से सुंदरकांड के विषय सूची में 44 वां सर्ग “प्रहस्तपुत्रस्य जमबुमालिनो वध:” के स्थान पर 13वां सर्ग ही पुनः अंकित हो गया है।आपका यह प्रयास अति सराहनीय है।
      कृपया संशोधित करने की कृपा करें।

      Reply
    • Aashish Soni

      🙏 जय श्री राम 🙏

      Reply
  • Amrit Singh

    जिस दिन मैं आपकी मदद करने योग्य बनूंगा उस दिन मैं जरूर आपकी मदद करूंगा । फोन पे के माध्यम से।

    Reply
  • राम किशोर पाण्डेय्

    जय श्री राम। माननीय संपादक महोदय।
    सप्रेम नमस्कार।
    संभवतःयांत्रिक भूल से सुंदरकांड के विषय सूची में 44 वां सर्ग “प्रहस्तपुत्रस्य जमबुमालिनो वध:” के स्थान पर 13वां सर्ग ही पुनः अंकित हो गया है।आपका यह प्रयास अति सराहनीय है।
    कृपया संशोधित करने की कृपा करें।

    Reply
  • राजन सिंह, अयोध्या

    श्री राम किशोर पांडेय जी ने जो त्रुटि बताए है कृप्या संशोधन करे

    Reply

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