वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Yuddhakanda with Hindi Meaning
वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड श्लोक हिंदी अर्थ सहित
Valmiki Ramayana Yuddhakanda with Hindi Meaning
काण्ड परिचय:
शत्रोर्जये समुत्साहे जनवादे विगर्हिते।
लंकाकाण्डं पठेत् किं वा श्रृणुयात् स सुखी भवेत्॥
युद्धकाण्ड में 128 सर्ग तथा सबसे अधिक 5,692 श्लोक प्राप्त होते हैं। उपरोक्त श्लोक के अनुसार शत्रु के जय, उत्साह और लोकापवाद के दोष से मुक्त होने के लिए युद्ध काण्ड का पाठ करना चाहिए।
युद्धकाण्ड में वानर सेना का पराक्रम, रावण-कुम्भकर्णादि राक्षसों का अपना पराक्रम-वर्णन, विभीषण-तिरस्कार, विभीषण का राम के पास गमन, विभीषण-शरणागति, समुद्र के प्रति क्रोध, नलादि की सहायता से सेतुबन्धन, शुक-सारण-प्रसंग, सरमावृत्तान्त, रावण-अंगद-संवाद, मेघनाद-पराजय, कुम्भकर्ण आदि राक्षसों का राम के साथ युद्ध-वर्णन, कुम्भकर्णादि राक्षसों का वध, मेघनाद वध, राम-रावण युद्ध, रावण वध, मंदोदरी विलाप, विभीषण का शोक, राम के द्वारा विभीषण का राज्याभिषेक, लंका से सीता का आनयन, सीता की शुद्धि हेतु अग्नि-प्रवेश, हनुमान, सुग्रीव, अंगद आदि के साथ राम, लक्ष्मण तथा सीता का अयोध्या प्रत्यावर्तन, राम का राज्याभिषेक तथा भरत का युवराज पद पर आसीन होना, सुग्रीवादि वानरों का किष्किन्धा तथा विभीषण का लंका को लौटना, रामराज्य वर्णन और रामायण पाठ श्रवणफल कथन आदि का निरूपण किया गया है।
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सर्ग एवं विषय:
सर्ग 1: हनुमान जी की प्रशंसा करके श्रीराम का उन्हें हृदय से लगाना और समुद्र को पार करने के लिये चिन्तित होना
सर्ग 2: सुग्रीव का श्रीराम को उत्साह प्रदान
सर्ग 4: श्रीराम आदि के साथ वानर-सेना का प्रस्थान और समुद्र-तट पर उसका पड़ाव
सर्ग 5: श्रीराम का सीता के लिये शोक और विलाप
सर्ग 6: रावण का कर्तव्य-निर्णय के लिये अपने मन्त्रियों से समुचित सलाह देने का अनुरोध करना
सर्ग 9: विभीषण का रावण से श्रीराम की अजेयता बताकर सीताको लौटा देने के लिये अनुरोध करना
सर्ग 10: विभीषण का रावण के महल में जाना, उसे अपशकुनों का भय दिखाकर सीता को लौटा देने के लिये प्रार्थना करना
सर्ग 11: रावण और उसके सभासदों का सभाभवन में एकत्र होना
सर्ग 13: महापार्श्व का रावण को उकसाना और रावण का शाप के कारण असमर्थ बताना तथा अपने पराक्रम के गीत गाना
सर्ग 14: विभीषण का राम को अजेय बताकर उनके पास सीता को लौटा देने की सम्मति देना
सर्ग 15: इन्द्रजित् द्वारा विभीषण का उपहास तथा विभीषण का उसे फटकारकर सभा में अपनी उचित सम्मति देना
सर्ग 16: रावण के द्वारा विभीषण का तिरस्कार और विभीषण का भी उसे फटकारकर चल देना
सर्ग 18: भगवान् श्रीराम का शरणागत की रक्षा का महत्त्व एवं अपना व्रत बताकरविभीषण से मिलना
सर्ग 19: विभीषण का आकाश से उतरकर भगवान् श्रीराम के चरणों की शरण लेना, श्रीराम का रावण-वध की प्रतिज्ञा करना
सर्ग 23: श्रीराम का लक्ष्मण से उत्पातसूचक लक्षणों का वर्णन और लङ्का पर आक्रमण
सर्ग 26: सारण का रावण को पृथक-पृथक वानर यूथपतियों का परिचय देना
सर्ग 27: वानरसेना के प्रधान यूथपतियों का परिचय
सर्ग 31: मायारचित श्रीराम का कटा मस्तक दिखाकर रावण द्वारा सीता को मोह में डालने का प्रयत्न
सर्ग 34: सीता के अनुरोध से सरमा का उन्हें मन्त्रियोंसहित रावण का निश्चित विचार बताना
सर्ग 35: माल्यवान् का रावण को श्रीराम से संधि करने के लिये समझाना
सर्ग 36: माल्यवान् पर आक्षेप और नगर की रक्षा का प्रबन्ध करके रावण का अपने अन्तःपुर में जाना
सर्ग 38: श्रीराम का प्रमुख वानरों के साथ सुवेल पर्वत पर चढ़कर वहाँ रात में निवास करना
सर्ग 39: वानरोंसहित श्रीराम का सुवेलशिखर से लङ्कापुरी का निरीक्षण करना
सर्ग 40: सुग्रीव और रावण का मल्लयुद्ध
सर्ग 42: लङ्का पर वानरों की चढ़ाई तथा राक्षसों के साथ उनका घोर युद्ध
सर्ग 43: द्वन्द्वयुद्ध में वानरों द्वारा राक्षसों की पराजय
सर्ग 45: इन्द्रजित् के बाणों से श्रीराम और लक्ष्मण का अचेत होना और वानरों का शोक करना
सर्ग 46: श्रीराम और लक्ष्मण को मूर्च्छित देख वानरों का शोक, इन्द्रजित् का पिता को शत्रुवध का वृत्तान्त बताना
सर्ग 48: सीता का विलाप और त्रिजटा का उन्हें समझा-बुझाकर श्रीराम-लक्ष्मण के जीवित होने का विश्वास दिलाना
सर्ग 51: श्रीराम के बन्धनमुक्त होने का पता पाकर चिन्तित हए रावण का धूम्राक्ष को युद्ध के लिये भेजना
सर्ग 52: धूम्राक्ष का युद्ध और हनुमान जी के द्वारा उसका वध
सर्ग 54: वज्रदंष्ट्र और अङ्गद का युद्ध तथा अङ्गद के हाथ से उस निशाचर का वध
सर्ग 55: रावण की आज्ञा से अकम्पन आदि राक्षसों का युद्ध में आना और वानरों के साथ उनका घोर युद्ध
सर्ग 56: हनुमान जी के द्वारा अकम्पन का वध
सर्ग 57: प्रहस्त का रावण की आज्ञा से विशाल सेनासहित युद्ध के लिये प्रस्थान
सर्ग 58: नील के द्वारा प्रहस्त का वध
सर्ग 60: अपनी पराजय से दुःखी रावण की आज्ञा से सोये कुम्भकर्ण का जगाया जाना और उसे देखकर वानरों का भयभीत होना
सर्ग 65: कुम्भकर्ण की रणयात्रा
सर्ग 67: कम्भकर्ण का भयंकर युद्ध और श्रीराम के हाथ से उसका वध
सर्ग 68: कुम्भकर्ण के वध का समाचार सुनकर रावण का विलाप
सर्ग 69: रावण के पुत्रों और भाइयों का युद्ध के लिये जाना और नरान्तकका अङ्गद के द्वारा वध
सर्ग 71: अतिकाय का भयंकर युद्ध और लक्ष्मण के द्वारा उसका वध
सर्ग 72:
सर्ग 73:
सर्ग 74:
सर्ग 75:
सर्ग 76:
सर्ग 77:
सर्ग 78:
सर्ग 79:
सर्ग 80:
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Sarg 72 ke baad ka translation nahin hai?
I loved Valmiki Ramayana published in sanskrit with Hindi translation however unable to find yudhkand after sarg 71 please publish that. Thank you 🙏
We are working on it with very limited resources.
Pure sarg ku nhi he
आपसे निवेदन है ,
युद्ध कांड जो अभी पूर्ण नहीं हुआ हैं उसके पूर्ण होने कि परतिक्षा में आपका एक पाठक!
धन्यवाद,सादर प्रणाम.
Hi Sure! हम लोग बहुत काम आर्थिक व्यवस्थाओं में कार्य करते हैं। आपको जल्द ही पढ़ने को मिलेगा।
please update after sarg 72