RamCharitManas (RamCharit.in)

इंटरनेट पर श्रीरामजी का सबसे बड़ा विश्वकोश | RamCharitManas Ramayana in Hindi English | रामचरितमानस रामायण हिंदी अनुवाद अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड हिंदी अर्थ सहित

वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड सर्ग 6 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Yuddhakanda Chapter 6

Spread the Glory of Sri SitaRam!

॥ श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः॥
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण
युद्धकाण्डम्
षष्ठः सर्गः (6)

(रावण का कर्तव्य-निर्णय के लिये अपने मन्त्रियों से समुचित सलाह देने का अनुरोध करना)

लङ्कायां तु कृतं कर्म घोरं दृष्ट्वा भयावहम्।
राक्षसेन्द्रो हनुमता शक्रेणेव महात्मना।
अब्रवीद् राक्षसान् सर्वान् ह्रिया किंचिदवाङ्मुखः॥१॥

इधर इन्द्रतुल्य पराक्रमी महात्मा हनुमान जी ने लङ्का में जो अत्यन्त भयावह घोर कर्म किया था, उसे देखकर राक्षसराज रावण का मुख लज्जा से कुछ नीचे को झुक गया और उसने समस्त राक्षसों से इस प्रकार कहा- ॥१॥

धर्षिता च प्रविष्टा च लङ्का दुष्प्रसहा पुरी।
तेन वानरमात्रेण दृष्टा सीता च जानकी॥२॥

‘निशाचरो! वह हनुमान्, जो एक वानरमात्र है, अकेला इस दुर्धर्ष पुरी में घुस आया। उसने इसे तहस-नहस कर डाला और जनककुमारी सीता से भेंट भी कर लिया॥२॥

प्रासादो धर्षितश्चैत्यः प्रवरा राक्षसा हताः।
आविला च पुरी लङ्का सर्वा हनुमता कृता॥३॥

‘इतना ही नहीं, हनुमान् ने चैत्यप्रासाद को धराशायी कर दिया, मुख्य-मुख्य राक्षसों को मार गिराया और सारी लङ्कापुरी में खलबली मचा दी॥३॥

किं करिष्यामि भद्रं वः किं वो युक्तमनन्तरम्।
उच्यतां नः समर्थं यत् कृतं च सुकृतं भवेत्॥४॥

‘तुम लोगों का भला हो। अब मैं क्या करूँ? तुम्हें जो कार्य उचित और समर्थ जान पड़े तथा जिसे करने पर कोई अच्छा परिणाम निकले, उसे बताओ॥४॥

मन्त्रमूलं च विजयं प्रवदन्ति मनस्विनः।
तस्माद् वै रोचये मन्त्रं रामं प्रति महाबलाः॥५॥

‘महाबली वीरो! मनस्वी पुरुषों का कहना है कि विजय का मूल कारण मन्त्रियों की दी हुई अच्छी सलाह ही है। इसलिये मैं श्रीराम के विषय में आपलोगों से सलाह लेना अच्छा समझता हूँ॥५॥

त्रिविधाः पुरुषा लोके उत्तमाधममध्यमाः।
तेषां तु समवेतानां गुणदोषौ वदाम्यहम्॥६॥

‘संसार में उत्तम, मध्यम और अधम तीन प्रकार के पुरुष होते हैं। मैं उन सबके गुण-दोषों का वर्णन करता हूँ॥६॥

मन्त्रस्त्रिभिर्हि संयुक्तः समर्थैर्मन्त्रनिर्णये।
मित्रैर्वापि समानार्थैर्बान्धवैरपि वाधिकैः॥७॥
सहितो मन्त्रयित्वा यः कर्मारम्भान् प्रवर्तयेत्।
दैवे च कुरुते यत्नं तमाहुः पुरुषोत्तमम्॥८॥

‘जिसका मन्त्र आगे बताये जाने वाले तीन लक्षणों से युक्त होता है तथा जो पुरुष मन्त्रनिर्णय में समर्थ मित्रों, समान दुःख-सुखवाले बान्धुवों और उनसे भी बढ़कर अपने हितकारियों के साथ सलाह करके कार्य का आरम्भ करता है तथा दैव के सहारे प्रयत्न करता है, उसे उत्तम पुरुष कहते हैं॥ ७-८॥

एकोऽर्थं विमृशेदेको धर्मे प्रकुरुते मनः।
एकः कार्याणि कुरुते तमाहुर्मध्यमं नरम्॥९॥

‘जो अकेला ही अपने कर्तव्य का विचार करता है, अकेला ही धर्म में मन लगाता है और अकेला ही सब काम करता है, उसे मध्यम श्रेणी का पुरुष कहा जाता है।

गुणदोषौ न निश्चित्य त्यक्त्वा दैवव्यपाश्रयम्।
करिष्यामीति यः कार्यमुपेक्षेत् स नराधमः॥१०॥

‘जो गुण-दोषका विचार न करके दैवका भी आश्रय छोड़कर केवल ‘करूँगा’ इसी बुद्धिसे कार्य आरम्भ करता है और फिर उसकी उपेक्षा कर देता है, वह पुरुषोंमें अधम है॥ १० ॥

यथेमे पुरुषा नित्यमुत्तमाधममध्यमाः।
एवं मन्त्रोऽपि विज्ञेय उत्तमाधममध्यमः॥११॥

‘जैसे ये पुरुष सदा उत्तम, मध्यम और अधम तीन प्रकार के होते हैं, वैसे ही मन्त्र (निश्चित किया हुआ विचार) भी उत्तम, मध्यम और अधम-भेद से तीन प्रकार का समझना चाहिये॥ ११॥

ऐकमत्यमुपागम्य शास्त्रदृष्टेन चक्षुषा।
मन्त्रिणो यत्र निरतास्तमाहुर्मन्त्रमुत्तमम्॥१२॥

‘जिसमें शास्त्रोक्त दृष्टि से सब मन्त्री एकमत होकर प्रवृत्त होते हैं, उसे उत्तम मन्त्र कहते हैं॥ १२ ॥

बह्वीरपि मतीर्गत्वा मन्त्रिणामर्थनिर्णयः।
पुनर्यत्रैकतां प्राप्तः स मन्त्रो मध्यमः स्मृतः॥१३॥

‘जहाँ प्रारम्भ में कई प्रकार का मतभेद होने पर भी अन्त में सब मन्त्रियों का कर्तव्यविषयक निर्णय एक हो जाता है, वह मन्त्र मध्यम माना गया है॥ १३॥

अन्योन्यमतिमास्थाय यत्र सम्प्रतिभाष्यते।
न चैकमत्ये श्रेयोऽस्ति मन्त्रः सोऽधम उच्यते॥१४॥

‘जहाँ भिन्न-भिन्न बुद्धिका आश्रय ले सब ओर से स्पर्धापूर्वक भाषण किया जाय और एकमत होने पर भी जिससे कल्याण की सम्भावना न हो, वह मन्त्र या निश्चय अधम कहलाता है॥१४॥

तस्मात् सुमन्त्रितं साधु भवन्तो मतिसत्तमाः।
कार्य सम्प्रतिपद्यन्तमेतत् कृत्यं मतं मम॥१५॥

‘आप सब लोग परम बुद्धिमान् हैं; इसलिये अच्छी तरह सलाह करके कोई एक कार्य निश्चित करें। उसी को मैं अपना कर्तव्य समशृंगा॥ १५॥

वानराणां हि धीराणां सहस्रैः परिवारितः।
रामोऽभ्येति पुरीं लङ्कामस्माकमुपरोधकः॥१६॥

‘(ऐसे निश्चय की आवश्यकता इसलिये पड़ी है कि) राम सहस्रों धीरवीर वानरों के साथ हमारी लङ्कापुरी पर चढ़ाई करने के लिये आ रहे हैं॥१६॥

तरिष्यति च सुव्यक्तं राघवः सागरं सुखम्।
तरसा युक्तरूपेण सानुजः सबलानुगः॥१७॥

‘यह बात भी भलीभाँति स्पष्ट हो चुकी है कि वे रघुवंशी राम अपने समुचित बल के द्वारा भाई, सेना और सेवकोंसहित सुखपूर्वक समुद्र को पार कर लेंगे। १७॥

समुद्रमुच्छोषयति वीर्येणान्यत्करोति वा।
तस्मिन्नेवंविधे कार्ये विरुद्धे वानरैः सह।
हितं पुरे च सैन्ये च सर्वं सम्मन्त्र्यतां मम॥१८॥

‘वे या तो समुद्र को ही सुखा डालेंगे या अपने पराक्रम से कोई दूसरा ही उपाय करेंगे। ऐसी स्थिति में वानरों से विरोध आ पड़ने पर नगर और सेना के लिये जो भी हितकर हो, वैसी सलाह आपलोग दीजिये।१८॥

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे षष्ठः सर्गः॥६॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मत आर्षरामायण आदिकाव्य के युद्धकाण्ड में छठा सर्ग पूरा हुआ॥६॥


Spread the Glory of Sri SitaRam!

Shivangi

शिवांगी RamCharit.in को समृद्ध बनाने के लिए जनवरी 2019 से कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। यह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक एवं MBA (Gold Medalist) हैं। तकनीकि आधारित संसाधनों के प्रयोग से RamCharit.in पर गुणवत्ता पूर्ण कंटेंट उपलब्ध कराना इनकी जिम्मेदारी है जिसे यह बहुत ही कुशलता पूर्वक कर रही हैं।

One thought on “वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड सर्ग 6 हिंदी अर्थ सहित | Valmiki Ramayana Yuddhakanda Chapter 6

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

उत्कृष्ट व निःशुल्क सेवाकार्यों हेतु आपके आर्थिक सहयोग की अति आवश्यकता है! आपका आर्थिक सहयोग हिन्दू धर्म के वैश्विक संवर्धन-संरक्षण में सहयोगी होगा। RamCharit.in व SatyaSanatan.com धर्मग्रंथों को अनुवाद के साथ इंटरनेट पर उपलब्ध कराने हेतु अग्रसर हैं। कृपया हमें जानें और सहयोग करें!

X
error: