अति गर्ब गनइ न सगुन असगुन स्रवहिं आयुध हाथ ते। भट गिरत रथ ते बाजि गज चिक्करत भाजहिं साथ ते॥ गोमाय गीध कराल खर रव स्वान बोलहिं अति घने। जनु कालदूत उलूक बोलहिं बचन परम भयावने॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
षष्ठः सोपानः | Descent 6th
श्री लंकाकाण्ड | Shri Lanka Kand
छंद :
अति गर्ब गनइ न सगुन असगुन स्रवहिं आयुध हाथ ते।
भट गिरत रथ ते बाजि गज चिक्करत भाजहिं साथ ते॥
गोमाय गीध कराल खर रव स्वान बोलहिं अति घने।
जनु कालदूत उलूक बोलहिं बचन परम भयावने॥
भावार्थ:
अत्यंत गर्व के कारण वह शकुन-अपशकुन का विचार नहीं करता। हथियार हाथों से गिर रहे हैं। योद्धा रथ से गिर पड़ते हैं। घोड़े, हाथी साथ छोड़कर चिग्घाड़ते हुए भाग जाते हैं। स्यार, गीध, कौए और गदहे शब्द कर रहे हैं। बहुत अधिक कुत्ते बोल रहे हैं। उल्लू ऐसे अत्यंत भयानक शब्द कर रहे हैं, मानो काल के दूत हों। (मृत्यु का संदेसा सुना रहे हों)॥
IAST :
Meaning :