अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी। सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी॥ समुझि सहम मोहि अपडर अपनें। सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 28.1| |Caupāī 28.1
अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी। सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी॥
समुझि सहम मोहि अपडर अपनें। सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें॥1॥
भावार्थ:-यह मेरी बहुत बड़ी ढिठाई और दोष है, मेरे पाप को सुनकर नरक ने भी नाक सिकोड़ ली है (अर्थात नरक में भी मेरे लिए ठौर नहीं है)। यह समझकर मुझे अपने ही कल्पित डर से डर हो रहा है, किन्तु भगवान श्री रामचन्द्रजी ने तो स्वप्न में भी इस पर (मेरी इस ढिठाई और दोष पर) ध्यान नहीं दिया॥1॥
ati baḍai mōri ḍhiṭhāī khōrī. suni agha narakahuom nāka sakōrī..
samujhi sahama mōhi apaḍara apanēṃ. sō sudhi rāma kīnhi nahiṃ sapanēṃ..
My presumption and error are indeed very great and, hearing the tale of my sins, even hell has turned up its nose at them. I shudder to think of it due to my assumed fears; while Sri Rama took no notice of them even in a dream.