अस्तुति करत देवतन्हि देखें। भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें॥ सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल। अस कहि कोपि गगन पर धायल॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
षष्ठः सोपानः | Descent 6th
श्री लंकाकाण्ड | Shri Lanka Kand
चौपाई :
अस्तुति करत देवतन्हि देखें। भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें॥
सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल। अस कहि कोपि गगन पर धायल॥3॥
भावार्थ:
देवताओं को श्री रामजी की स्तुति करते देख कर रावण ने सोचा, मैं इनकी समझ में एक हो गया, (परन्तु इन्हें यह पता नहीं कि इनके लिए मैं एक ही बहुत हूँ) और कहा- अरे मूर्खों! तुम तो सदा के ही मेरे मरैल (मेरी मार खाने वाले) हो। ऐसा कहकर वह क्रोध करके आकाश पर (देवताओं की ओर) दौड़ा॥3॥
IAST :
Meaning :