उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥ सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई4 |Caupāī 4
उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥4॥
भावार्थ:-उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट जाते हैं एवं श्री रामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और प्रकट जहाँ जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने लगते हैं-॥4॥
ugharahiṃ bimala bilōcana hī kē. miṭahiṃ dōṣa dukha bhava rajanī kē..
sūjhahiṃ rāma carita mani mānika. guputa pragaṭa jahaom jō jēhi khānika..
With its very appearance the bright eyes of the mind get opened; the attendant evils and sufferings of the night of mundane existence disappear; and gems and rubies in the shape of stories of Sri Rama, both patent and hidden, wherever and in whatever mine they may be, come to light.