एकु मनोरथु बड़ मन माहीं। सभयँ सकोच जात कहि नाहीं॥ कहहु तात प्रभु आयसु पाई। बोले बानि सनेह सुहाई॥1॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
एकु मनोरथु बड़ मन माहीं। सभयँ सकोच जात कहि नाहीं॥
कहहु तात प्रभु आयसु पाई। बोले बानि सनेह सुहाई॥1॥
भावार्थ:
मेरे मन में एक और बड़ा मनोरथ है, जो भय और संकोच के कारण कहा नहीं जाता। (श्री रामचन्द्रजी ने कहा-) हे भाई! कहो। तब प्रभु की आज्ञा पाकर भरतजी स्नेहपूर्ण सुंदर वाणी बोले-॥1॥
English :
IAST :
Meaning :