एहि सुख जोग न लोग सब कहहिं कहाँ अस भागु। सहज सुभायँ समाज दुहु राम चरन अनुरागु॥280॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
दोहा :
एहि सुख जोग न लोग सब कहहिं कहाँ अस भागु।
सहज सुभायँ समाज दुहु राम चरन अनुरागु॥280॥
भावार्थ:
सब लोग कह रहे हैं कि हम इस सुख के योग्य नहीं हैं, हमारे ऐसे भाग्य कहाँ? दोनों समाजों का श्री रामचन्द्रजी के चरणों में सहज स्वभाव से ही प्रेम है॥280॥
English :
IAST :
Meaning :