कहि न जाइ कछु हृदय गलानी। मन महुँ रामहि सुमिर सयानी॥ जौं प्रभु दीनदयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (58.3) | Caupāī (58.3)
कहि न जाइ कछु हृदय गलानी। मन महुँ रामहि सुमिर सयानी॥
जौं प्रभु दीनदयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा॥3॥
भावार्थ:-सतीजी के हृदय की ग्लानि कुछ कही नहीं जाती। बुद्धिमती सतीजी ने मन में श्री रामचन्द्रजी का स्मरण किया और कहा- हे प्रभो! यदि आप दीनदयालु कहलाते हैं और वेदों ने आपका यह यश गाया है कि आप दुःख को हरने वाले हैं, ॥3॥
kahi na jāī kachu hṛdaya galānī. mana mahuom rāmāhi sumira sayānī..
jau prabhu dīnadayālu kahāvā. āratī harana bēda jasu gāvā..
The anguish of Her heart was beyond words. The sane lady invoked the presence of RŒma in Her heart and addressed Him thus; “If they refer to You as compassionate to the poor and if the Vedas have glorified You as the dispeller of sorrow,