कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना। सिर धुनि गिरा लगत पछिताना॥ हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 10(ख).4 |Caupāī 10( Kha).4
कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना।
सिर धुनि गिरा लगत पछिताना॥
हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना॥4॥
भावार्थ:-संसारी मनुष्यों का गुणगान करने से सरस्वतीजी सिर धुनकर पछताने लगती हैं (कि मैं क्यों इसके बुलाने पर आई)। बुद्धिमान लोग हृदय को समुद्र, बुद्धि को सीप और सरस्वती को स्वाति नक्षत्र के समान कहते हैं॥4॥
kīnhēṃ prākṛta jana guna gānā. sira dhuni girā lagata pachitānā..
hṛdaya siṃdhu mati sīpa samānā. svāti sāradā kahahiṃ sujānā..
Finding the bard singing the glories of worldly men the goddess of speech begins to beat her brow and repent. The wise liken the heart of a poet to the sea, his intellect to the shell containing pearls and goddess Sarasvati to the star called Svati (the modern Arcturus, the fifteenth lunar asterism considered as favourable to the formation of pearls).