कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥ राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा॥5॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 13.5| Caupai 13.5
कीरति भनिति भूति भलि सोई।
सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥
राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा॥5॥
भावार्थ:-कीर्ति, कविता और सम्पत्ति वही उत्तम है, जो गंगाजी की तरह सबका हित करने वाली हो। श्री रामचन्द्रजी की कीर्ति तो बड़ी सुंदर (सबका अनन्त कल्याण करने वाली ही) है, परन्तु मेरी कविता भद्दी है। यह असामंजस्य है (अर्थात इन दोनों का मेल नहीं मिलता), इसी की मुझे चिन्ता है॥5॥
kīrati bhaniti bhūti bhali sōī. surasari sama saba kahaom hita hōī..
rāma sukīrati bhaniti bhadēsā. asamaṃjasa asa mōhi aomdēsā..
Of glory, poetry and affluence that alone is blessed which, like the celestial river (Ganga), is conducive to the good of all. The glory of Sri Rama is charming indeed, while my speech is rough. This is something incongruous, I am afraid.