गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा॥ साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं॥5॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई5 |Caupāī 5
गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा॥
साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं॥5॥
भावार्थ:-पवन के संग से धूल आकाश पर चढ़ जाती है और वही नीच (नीचे की ओर बहने वाले) जल के संग से कीचड़ में मिल जाती है। साधु के घर के तोता-मैना राम-राम सुमिरते हैं और असाधु के घर के तोता-मैना गिन-गिनकर गालियाँ देते हैं॥5॥
gagana caḍhai raja pavana prasaṃgā. kīcahiṃ milai nīca jala saṃgā..
sādhu asādhu sadana suka sārīṃ. sumirahiṃ rāma dēhiṃ gani gārī..
Through contact with the wind dust ascends to the sky, while it is assimilated with mud when united with low-lying waters. Parrots and Mainas nurtured in the house of the virtuous and the wicked repeat the name of Rama and pour a volley of abuses respectively.