जदपि कबित रस एकउ नाहीं। राम प्रताप प्रगट एहि माहीं॥ सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बड़प्पनु पावा॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 9.4| caupāī 9.4
जदपि कबित रस एकउ नाहीं।
राम प्रताप प्रगट एहि माहीं॥
सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बड़प्पनु पावा॥4॥
भावार्थ:-यद्यपि मेरी इस रचना में कविता का एक भी रस नहीं है, तथापि इसमें श्री रामजी का प्रताप प्रकट है। मेरे मन में यही एक भरोसा है। भले संग से भला, किसने बड़प्पन नहीं पाया?॥4॥
jadapi kabita rasa ēkau nāhī. rāma pratāpa prakaṭa ēhi māhīṃ..
sōi bharōsa mōrēṃ mana āvā. kēhiṃ na susaṃga baḍappanu pāvā..
Although it has no poetic charm whatsoever, the glory of Sri Rama is manifest in it. This is the only hope which flashes on my mind; who has not been exalted by noble company?