जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं। कहहु तूल केहि लेखे माहीं॥ समुझत अमित राम प्रभुताई। करत कथा मन अति कदराई॥6॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 11.6|Caupāī 11.6
जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं।
कहहु तूल केहि लेखे माहीं॥
समुझत अमित राम प्रभुताई। करत कथा मन अति कदराई॥6॥
भावार्थ:-जिस हवा से सुमेरु जैसे पहाड़ उड़ जाते हैं, कहिए तो, उसके सामने रूई किस गिनती में है। श्री रामजी की असीम प्रभुता को समझकर कथा रचने में मेरा मन बहुत हिचकता है-॥6॥
jēhiṃ māruta giri mēru uḍaāhīṃ. kahahu tūla kēhi lēkhē māhīṃ..
samujhata amita rāma prabhutāī. karata kathā mana ati kadarāī..
Tell me, of what account is cotton in the face of the strong wind before which even mountains like Meru are blown away? Realizing the infinite glory of Sri Rama, my mind feels very diffident in proceeding with this story.(6)