तब चित चढ़ेउ जो संकर कहेऊ। प्रभु अपमानु समुझि उर दहेऊ॥ पाछिल दुखु न हृदयँ अस ब्यापा। जस यह भयउ महा परितापा॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (62.3) | Caupāī (62.3)
तब चित चढ़ेउ जो संकर कहेऊ। प्रभु अपमानु समुझि उर दहेऊ॥
पाछिल दुखु न हृदयँ अस ब्यापा। जस यह भयउ महा परितापा॥3॥
भावार्थ:-तब शिवजी ने जो कहा था, वह उनकी समझ में आया। स्वामी का अपमान समझकर सती का हृदय जल उठा। पिछला (पति परित्याग का) दुःख उनके हृदय में उतना नहीं व्यापा था, जितना महान् दुःख इस समय (पति अपमान के कारण) हुआ॥3॥
taba cita caḍhaēu jō saṃkara kahēū. prabhu apamānu samujhi ura dahēū..
pāchila dukhu na hṛdayaom asa byāpā. jasa yaha bhayau mahā paritāpā..
Then did She realize the force of Sarkara’s warning; Her heart burnt within Her at the thought of the insult offered to Her lord. The former grief (that of repudiation by Her lord) did not torment Her heart so much as the great agony She now felt (as a result of the insult offered to Her husband).