तेज कृसानु रोष महिषेसा। अघ अवगुन धन धनी धनेसा॥ उदय केत सम हित सबही के। कुंभकरन सम सोवत नीके॥3॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई3 |Caupāī 3
तेज कृसानु रोष महिषेसा। अघ अवगुन धन धनी धनेसा॥
उदय केत सम हित सबही के। कुंभकरन सम सोवत नीके॥3॥
भावार्थ:-जो तेज (दूसरों को जलाने वाले ताप) में अग्नि और क्रोध में यमराज के समान हैं, पाप और अवगुण रूपी धन में कुबेर के समान धनी हैं, जिनकी बढ़ती सभी के हित का नाश करने के लिए केतु (पुच्छल तारे) के समान है और जिनके कुम्भकर्ण की तरह सोते रहने में ही भलाई है॥3॥
tēja kṛsānu rōṣa mahiṣēsā. agha avaguna dhana dhanī dhanēsā..
udaya kēta sama hita sabahī kē. kuṃbhakarana sama sōvata nīkē..
In splendour they emulate the god of fire and in anger they vie with the god of death, who rides a buffalo. They are rich in crime and vice as Kubera, the god of riches, is in gold. Like the rise of a comet their advancement augurs ill for others’ interests; like the slumber of Kumbhakarna their decline alone is propitious for the world.