नाह नेहु नित बढ़त बिलोकी। हरषित रहति दिवस जिमि कोकी॥ सिय मनु राम चरन अनुरागा। अवध सहस सम बनु प्रिय लागा॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
नाह नेहु नित बढ़त बिलोकी। हरषित रहति दिवस जिमि कोकी॥
सिय मनु राम चरन अनुरागा। अवध सहस सम बनु प्रिय लागा॥2॥
भावार्थ:
स्वामी का प्रेम अपने प्रति नित्य बढ़ता हुआ देखकर सीताजी ऐसी हर्षित रहती हैं, जैसे दिन में चकवी! सीताजी का मन श्री रामचन्द्रजी के चरणों में अनुरक्त है, इससे उनको वन हजारों अवध के समान प्रिय लगता है॥2॥
English :
IAST :
Meaning :