निरखि बदनु कहि भूप रजाई। रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई॥ रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं। देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
द्वितीय सोपान | Descent Second
श्री अयोध्याकाण्ड | Shri Ayodhya-Kand
चौपाई :
निरखि बदनु कहि भूप रजाई। रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई॥
रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं। देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं॥4॥
भावार्थ:
श्री रामचन्द्रजी के मुख को देखकर और राजा की आज्ञा सुनाकर वे रघुकुल के दीपक श्री रामचन्द्रजी को (अपने साथ) लिवा चले। श्री रामचन्द्रजी मंत्री के साथ बुरी तरह से (बिना किसी लवाजमे के) जा रहे हैं, यह देखकर लोग जहाँ-तहाँ विषाद कर रहे हैं॥4॥
English :
IAST :
Meaning :