पति परित्याग हृदयँ दुखु भारी। कहइ न निज अपराध बिचारी॥ बोली सती मनोहर बानी। भय संकोच प्रेम रस सानी॥4॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई (60.4) | Caupāī (60.4)
पति परित्याग हृदयँ दुखु भारी। कहइ न निज अपराध बिचारी॥
बोली सती मनोहर बानी। भय संकोच प्रेम रस सानी॥4॥
भावार्थ:-क्योंकि उनके हृदय में पति द्वारा त्यागी जाने का बड़ा भारी दुःख था, पर अपना अपराध समझकर वे कुछ कहती न थीं। आखिर सतीजी भय, संकोच और प्रेमरस में सनी हुई मनोहर वाणी से बोलीं- ॥4॥
pati parityāga hṛdaya dukhu bhārī. kahai na nija aparādha bicārī..
bōlī satī manōhara bānī. bhaya saṃkōca prēma rasa sānī..
Repudiation by Her lord tormented Her heart not a little; but conscious of Her guilt She would not utter a word. At last Sats spoke in a charming voice tinged with awe, misgiving and affection