प्रौढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की। कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की॥ एकु दारुगत देखिअ एकू। पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 22.2| |Caupāī 22.2
प्रौढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की। कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की॥
एकु दारुगत देखिअ एकू। पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू॥2॥
भावार्थ:-सज्जनगण इस बात को मुझ दास की ढिठाई या केवल का व्योक्ति न समझें। मैं अपने मन के विश्वास, प्रेम और रुचि की बात कहता हूँ। एक (निर्गुण) उस अप्रकट अग्नि के समान है, जो काठ के अंदर है, परन्तु दिखती नहीं और एक (सगुण) उस प्रकट अग्नि के समान है, जो प्रत्यक्ष दिखती है। ( निर्गुण और सगुण) दोनों प्रकार के ब्रह्म का ज्ञान अग्नि के समान है। ॥2॥
तत्त्वतः दोनों एक ही हैं, केवल प्रकट-अप्रकट के भेद से भिन्न मालूम होती हैं। इसी प्रकार निर्गुण और सगुण तत्त्वतः एक ही हैं।
prōḍhai sujana jani jānahiṃ jana kī. kahauom pratīti prīti ruci mana kī..
ēku dārugata dēkhia ēkū. pāvaka sama juga brahma bibēkū..
Gentlemen should not take this as a bold assertion on the part of this servant; I record my mind’s own conviction, partiality and liking. The two aspects of Brahma (God) should be recognized as akin to fire: –