बंचक भगत कहाइ राम के। किंकर कंचन कोह काम के॥ तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी। धींग धरम ध्वज धंधक धोरी॥2॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
चौपाई 11.2|Caupāī 11.2
बंचक भगत कहाइ राम के।
किंकर कंचन कोह काम के॥
तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी। धींग धरम ध्वज धंधक धोरी॥2॥
भावार्थ:-जो श्री रामजी के भक्त कहलाकर लोगों को ठगते हैं, जो धन (लोभ), क्रोध और काम के गुलाम हैं और जो धींगाधींगी करने वाले, धर्मध्वजी (धर्म की झूठी ध्वजा फहराने वाले दम्भी) और कपट के धन्धों का बोझ ढोने वाले हैं, संसार के ऐसे लोगों में सबसे पहले मेरी गिनती है॥2॥
baṃcaka bhagata kahāi rāma kē. kiṃkara kaṃcana kōha kāma kē..
tinha mahaom prathama rēkha jaga mōrī. dhīṃga dharamadhvaja dhaṃdhaka dhōrī..
who are impostors claiming to be devotees of Sri Rama, though slaves of mammon, anger and passion, and who are unscrupulous, hypocritical and foremost among intriguers-I occupy the first place among them.