बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहिं कीन्ह जहँ। संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी॥14च॥
श्रीगणेशायनमः | Shri Ganeshay Namah
श्रीजानकीवल्लभो विजयते | Shri JanakiVallabho Vijayte
श्रीरामचरितमानस | Shri RamCharitManas
प्रथम सोपान | Descent First
श्री बालकाण्ड | Shri Bal-Kanda
सोरठा 14(च)| Soraṭhā 14(ca)
बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहिं कीन्ह जहँ।
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी॥14च॥
भावार्थ:-मैं ब्रह्माजी के चरण रज की वन्दना करता हूँ, जिन्होंने भवसागर बनाया है, जहाँ से एक ओर संतरूपी अमृत, चन्द्रमा और कामधेनु निकले और दूसरी ओर दुष्ट मनुष्य रूपी विष और मदिरा उत्पन्न हुए॥14 (च)॥
baṃdauom bidhi pada rēnu bhava sāgara jēhi kīnha jahaom.
saṃta sudhā sasi dhēnu pragaṭē khala biṣa bārunī..14ca..
I greet the dust on the feet of Brahma (the Creator), who has evolved the ocean of worldly existence, the birth-place of nectar, the moon and the cow of plenty in the form of saints, on the one hand, and of poison and wine in the form of the wicked, on the other.